ऑनलाइन काव्य गोष्ठी में हुआ हिंदी का गुणगान

आगरा। हिन्दी पखवाड़े 2024 के तहत आस्ट्रेलियांचल हिन्दी ई-पत्रिका और भारत- आस्ट्रेलिया साहित्य सेतु के साझा प्रयास से वर्चुअली हुई आभासी अंतरराष्ट्रीय हिंदी काव्य संध्या में देश-विदेश के साहित्य मनीषियों ने अपनी रचनाएं पढ़ीं एवं हिन्दी के उत्थान पर किए जा रहे प्रयासों को साझा किया।

Sep 18, 2024 - 10:33
Sep 18, 2024 - 16:44
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ऑनलाइन काव्य गोष्ठी में हुआ हिंदी का गुणगान

सिडनी से ऑस्ट्रेलियांचल पत्रिका की संपादक डॉ. भावना कुँअर और भारत- ऑस्ट्रेलिया साहित्य सेतु के संस्थापक अनिल कुमार शर्मा ने अतिथियों का परिचय दिया। प्रारम्भ में गुरुग्राम की कवयित्री इन्दुराज निगम ने मां सरस्वती की आराधना की।

साहित्यिक संस्था परंपरा के संस्थापक और कवि राजेंद्र राज निगम की पंक्तियां सराही गईं -
“हमारे मन में समा गई हो, तुम्हें सुनेंगे, तुम्हें गुनेंगे।
हमारी हिन्दी, ओ प्यारी हिन्दी, तुम्हें लिखेंगे, तुम्हें पढ़ेंगे।”

परंपरा की संरक्षक कवियत्री इन्दु "राज" निगम ने अपनी रचना से हिंदी को नमन किया- 
“माथे पे जैसे बिन्दी, जैसे हो शिव का नन्दी।
ज्यों कुम्भ या नवचंदी, ऐसी हमारी हिन्दी।”

ऑस्ट्रेलिया से ऑस्ट्रेलियांचल के संरक्षक प्रगीत कुँअर ने इस दोहे से हिन्दी भाषा की सुंदरता को श्रोताओं तक पहुँचाया- 
“देवनागरी से हुआ, हिन्दी का जब मेल।
काग़ज़ पर सजती गई, शब्द श्रृंखला बेल।”

भारत-आस्ट्रेलिया साहित्य सेतु के संस्थापक अनिल शर्मा ने यह रचना पढ़ी- 
“मत करो हिन्दी हिन्दी, अभी तो मैं जुड़ी हुई हूँ जड़ों से बहुत मज़बूती के साथ कबीर के दोहों में सावन के मल्हारों में।”

ऑस्ट्रेलियांचल हिन्दी ई-पत्रिका की संस्थापक, संपादक एवं कवियत्री डॉ. भावना कुँअर ने स्वरचित गीत प्रस्तुत किया-
“नया देश है, नया वेश है, नयी यहाँ की बोली है
पर कुदरत की दुनिया भर में सजी वही रंगोली है।”

रचनाकार डॉ. वनिता बाजपेई ने अपनी निम्न रचना प्रस्तुत की- 
“बीत गया है त्यौहार, ऊँघ रहा है बाज़ार।”

भारत से ही जुड़े सुप्रसिद्ध कवि भारत भूषण आर्य ने अपने दोहे और ग़ज़ल प्रस्तुत की जिसको मंच से बहुत सराहा गया-
“अगर ले जा सको मौसम वतन का साथ ले जाओ 
कहॉं परदेस का मौसम कलेजे से लगाता है।“

ब्रज भाषा के कवि डॉ. ब्रज बिहारी लाल “बिरजु” की रचना को श्रोताओं का भरपूर स्नेह मिला- 
“ब्रज में महिमा वन की न्यारी, जामें रास रचें बनवारी।”

मुख्य अतिथि ख्यातिप्राप्त कवियत्री डॉ. शशि तिवारी ने अपनी प्रसिद्ध कविता “शुक्रिया आँखों का” का पाठ किया और हिन्दी को समर्पित अपना सुंदर मुक्तक प्रस्तुत किया-
“अपने ह्रदय को प्रेम की तुला में तोलिए,
मन में कोई जो गाँठ हो तो उसको खोलिए,
भारत में चाहे विश्व में कहीं भी जाएँ आप,
हिन्दी में ही हिन्दी में ही हिन्दी में बोलिए।”

कार्यक्रम के अध्यक्ष, सुप्रसिद्ध भाषाविद एवं अंतरराष्ट्रीय हिन्दी पत्रिका “सौरभ पत्रिका” के संस्थापक डॉ. हरिपाल सिंह ने ने हिंदी के बारे में विस्तार से चर्चा की और हिन्दी भाषा पर किए जा रहे नवीन सुधारों से एवं हिन्दी को विश्व की विशिष्ट भाषाओं की सूची में स्थान देने के लिए किए जा रहे प्रयासों से श्रोताओं को अवगत कराया। साथ ही उन्होंने ब्रज भाषा एवं हिन्दी में स्वरचित रचनाएँ पढ़ीं- “कीकर का काँटा जब आता है, पाँव के नीचे चुभकर तिलमिला देता है।”

कार्यक्रम के अंत में अनिल शर्मा एवं डॉ. भावना कुँअर ने उपस्थित कविगण एवं ऑनलाइन जुड़े सभी दर्शकों को  धन्यवाद दिया।