बच्चों की चुप्पी को भी सुनिए: आगरा में 38 स्कूलों के शिक्षकों ने सीखा बच्चों के मन को समझने का तरीका
विलम विहार, सिकंदरा-बोदला रोड स्थित फीलिंग माइंड्स संस्था में आयोजित कार्यशाला में 38 स्कूलों के शिक्षकों ने दो सत्रों में बच्चों की मनोदशा पहचानने और संवाद के तरीकों पर प्रशिक्षण लिया। कार्यक्रम में नि:शुल्क परामर्श सत्र भी आयोजित हुआ। जल्द ही आगरा में मेंटल हेल्थ पर नई संस्था का गठन भी प्रस्तावित है।

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आगरा। बच्चों की चुप्पी भी एक संदेश होती है। जब बच्चा आंख मिलाने से कतराता है, जब वो बार-बार वही गलती दोहराता है, जब वो अचानक अत्यधिक शांत या अत्यधिक आक्रामक हो जाता है, तो ये केवल अनुशासन की कमी नहीं, बल्कि एक आंतरिक संघर्ष का संकेत होता है। बाल मनोविकारों का कैसे करें निदान, विषय पर विशेष कार्यशाला को संबोधित करते हुए ये कहा मुख्य वक्ता डॉ. चीनू अग्रवाल ने।
विमल विहार, सिकंदरा-बोदला रोड स्थित फीलिंग माइंड्स संस्था के कार्यालय में प्रीलुड पब्लिक स्कूल द्वारा कार्यशाला का आयोजन किया गया। दो सत्रों में हुई कार्यशाला में आगरा पब्लिक स्कूल एसोसियेशन (अप्सा) के 38 स्कूलों के शिक्षक शिक्षिकाओं ने प्रतिभाग किया।
कार्यशाला का के प्रथम सत्र का शुभारंभ मुख्य अतिथि अप्सा के अध्यक्ष डॉ. सुशील गुप्ता विभव ने और द्वितीय सत्र का शेखर भरत सिंह ने दीप प्रज्वलन के साथ किया।
डॉ सुशील गुप्ता विभव ने कहा कि कार्यशाला का उद्देश्य बच्चों में बढ़ते मानसिक तनाव, व्यवहारिक असंतुलन और मनोविकारों के प्रति समाज को जागरूक बनाना है।
जानी मानी बाल मनोवैज्ञानिक और फीलिंग माइंड्स संस्था की संस्थापक डॉ. चीनू अग्रवाल ने कार्यशाला को संबोधित करते हुए कहा कि बच्चे अक्सर अपनी तकलीफ को शब्दों में नहीं कह पाते, लेकिन उनका व्यवहार उनकी स्थिति का आईना होता है। ऐसे में माता-पिता और शिक्षक संवेदनशील संवाद और भावनात्मक समझदारी के माध्यम से बच्चों की मानसिक स्थिति को बेहतर समझ सकते हैं।
उन्होंने बताया कि "फीलिंग माइंड्स" का लक्ष्य बच्चों और युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता फैलाना है। उन्होंने घोषणा की कि संस्था द्वारा भविष्य में भी नियमित रूप से इस तरह की कार्यशालाएं आयोजित की जाती रहेंगी, ताकि समाज में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सकारात्मक वातावरण का निर्माण हो सके।
कार्यशाला के प्रथम सत्र में प्रीलुड पब्लिक स्कूल, सन फ्लावर पब्लिक स्कूल, जीआरएन सरस्वती बालिका विद्यालय, सेंट थॉमस स्कूल, डॉ एमपीएस वर्ल्ड स्कूल, सेंट फ्रांसीस कॉन्वेंट स्कूल, सेंट्रल आगरा पब्लिक स्कूल, माही इंटरनेशनल स्कूल, सेंट फ्रांसीस कॉन्वेंट स्कूल सिकंदरा, डॉ वीरेंद्र स्वरूप एजुकेशन सेंटर, कानपुर और द्वितीय सत्र में होली लाइट पब्लिक स्कूल, नेमीचंद एजुकेशन एकेडमी, एसएस कान्वेंट स्कूल, एसआरडी सीनियर सेकेंडरी पब्लिक स्कूल, मांगलिक शिक्षा केंद्र, एस एस पब्लिक स्कूल, डॉ एमपीएस वर्ल्ड स्कूल, ब्रिज पब्लिक स्कूल क्रिम्सन पब्लिक स्कूल, कर्नल ब्राइटलैंड पब्लिक स्कूल, बीबीवीएम पब्लिक स्कूल, सनशाइन पब्लिक स्कूल, शारदा वर्ल्ड स्कूल, शांतिनिकेतन पब्लिक स्कूल, माही इंटरनेशनल स्कूल के शिक्षक शिक्षिकाओं ने बालमन को समझने का प्रशिक्षण लिया।
कार्यशाला में बाल मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े विषयों पर चर्चा के साथ-साथ नि:शुल्क परामर्श सत्र भी आयोजित किया गया, जिसमें कई अभिभावकों और शिक्षकों ने भाग लेकर विशेषज्ञों से मार्गदर्शन प्राप्त किया।
कार्यक्रम में उपस्थित शिक्षकों, अभिभावकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और छात्रों ने कार्यशाला को उपयोगी और ज्ञानवर्धक बताया। साथ ही प्रश्न भी किए। डॉ रविंद्र अग्रवाल ने धन्यवाद ज्ञापित किया। शैलेश अग्रवाल ने संचालन किया।
सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र दिए गए और समापन जलपान के साथ हुआ।
आगरा में जल्द गठन होगा मेंटल हेल्थ पर नई समिति का
डॉ. चीनू ने बताया कि आज के बच्चों में मानसिक दबाव के प्रमुख कारण अत्यधिक प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण है।मोबाइल व इंटरनेट की निर्भरता, अभिभावकों की अपेक्षाएं, भावनात्मक संवाद की कमी, परिवार में झगड़े या अस्थिरता, नींद और खानपान में असंतुलन हैं। उन्होंने बताया कि मानसिक विकार केवल विकृति नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक असंतुलन की एक अवस्था है जिसे समय रहते पहचाना जाए तो पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है। वर्तमान समाज में लगातार बढ़ रही मानसिक समस्याओं को लेकर जल्द ही आगरा में इंटरनेशनल सोसायटी फॉर मेंटल हेल्थ एडवोकेसी एंड एक्शन संस्था का गठन किया जाएगा।
ऐसे पहचाने बाल मनोविकार को
डॉ. चीनू अग्रवाल के अनुसार, निम्न संकेतों पर विशेष ध्यान देना चाहिए-
-लगातार उदासी या आत्म-हीनता की भावना।
-आवेश या चिड़चिड़ापन में अचानक वृद्धि।
-अचानक सामाजिक मेल-जोल से दूरी बनाना।
-हर छोटी बात पर गुस्सा आना या रो पड़ना।
-अकेले में बातें करना, चीज़ें तोड़ना या खुद को नुकसान पहुंचाना।
-भोजन या नींद में असामान्य परिवर्तन।
-बार-बार बीमार पड़ना, लेकिन बिना शारीरिक कारण के।
-पढ़ाई से पूरी तरह मन हट जाना, ध्यान न लगना।
डॉ. चीनू ने बताया कि यदि ये लक्षण लगातार दो सप्ताह से अधिक बने रहें, तो यह किसी गंभीर मानसिक स्थिति (जैसे एंग्जायटी, डिप्रेशन) का संकेत हो सकता है और तत्काल विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए।
इस तरह समझें बाल मन को
-हर दिन 10 मिनट बच्चों से बिना डांट के संवाद करें
-बच्चों की बातों को बीच में न टोकें—उन्हें पूरा बोलने दें
-"तुम्हें क्या चाहिए" से पहले पूछें, "तुम कैसा महसूस कर रहे हो?"
-सजा की जगह सहमति और विकल्प दें
-भावनात्मक शब्दावली सिखाएं—"मैं परेशान हूं", "मुझे डर लग रहा है" आदि
-रोज़ाना रूटीन तय करें जिसमें खेल, कला और सुकून का समय हो
-स्क्रीन टाइम सीमित कर "रियल टाइम अटेंशन" दें