पुण्यतिथि पर विशेषः इंदिरा गांधी, जिनके बलिदान ने भारत की एकता को अमरत्व दिया
भारत की लौह महिला इंदिरा गांधी के खून की एक-एक बूंद ने भारत को और मजबूती प्रदान की है। इतिहास उनका अमर शहीदों में प्रमुखता के साथ स्मरण करता रहेगा। इंदिरा जी हमेशा शहीदों की दुनिया में सूर्य बनकर चमकती रहेंगी।
-रमाशंकर शर्मा, एडवोकेट-
31 अक्टूबर 1984, बुधवार का वह दिन भारत के स्वर्णिम इतिहास में एक ऐसे काले पृष्ठ के रूप में दर्ज हो गया, जिसे कोई न चाहते हुए भी पढ़ना चाहेगा। इस दिन सुबह करीब 10:30 बजे, ऐसा लगा मानो पूरे देश का हृदय थम गया हो। वह कांच का गिलास टूट गया जो अमृतमयी आत्मा से लबालब भरा हुआ था और जिसमें देश की आत्मा छलकती थी। वह अमृतमयी आत्मा- श्रीमती इंदिरा गांधी, खून की बूंद बनकर उसी मिट्टी में मिल गईं, जिससे उनका अस्तित्व था।
उस सुबह भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री, भारत रत्न श्रीमती इंदिरा गांधी ब्रिटिश पत्रकार पीटर उत्सीन को साक्षात्कार देने के लिए तैयार हो रही थीं। उन्होंने क्रीम रंग की साड़ी पहनी थी। अपनी बचपन की सखी पुपुल जयकर से मुस्कराकर पूछा- पुपुल, कैसी लग रही हूं? पुपुल ने भी मुस्कराकर कहा- दीदी, आज आप इतनी सुंदर लग रही हैं कि कहीं नजर न लग जाए। और सचमुच, वह दिन भारत के इतिहास पर नजर बनकर उतर आया।
इंदिरा गांधी अपने निवास एक सफदरजंग रोड से निकलकर 24 अकबर रोड कांग्रेस कार्यालय की ओर रवाना हुईं। सुरक्षा में वही दो अंगरक्षक थे, जिन पर उन्हें सबसे अधिक भरोसा था- बेअंत सिंह और सतवंत सिंह।
बेअंत सिंह लगभग दस वर्षों से उनकी सुरक्षा में तैनात था और विदेशी दौरों पर भी साथ रहता था, जबकि सतवंत सिंह को अभी कुछ महीने पहले ही सुरक्षा टीम में शामिल किया गया था।
जैसे ही इंदिरा गांधी ने रोज़ की तरह मुस्कराकर बेअंत सिंह को नमस्कार किया, उसने अचानक सर्विस रिवॉल्वर तान दी। इंदिरा जी ने चौंककर कहा- यह क्या कर रहे हो? उत्तर में जवाब नहीं, गोलियों की बरसात थी।
बेअंत सिंह ने उनके पेट और छाती में गोलियां दागीं और फिर सतवंत सिंह ने कार्बाइन से तीस राउंड फायर कर दिए। कुछ ही क्षणों में इंदिरा गांधी ज़मीन पर गिर पड़ीं। दूसरे अंगरक्षक रामेश्वर दयाल आगे बढ़े तो उन्हें भी पैर में गोली मार दी गई।
घटना की सूचना मिलते ही सोनिया गांधी दौड़कर पहुंचीं। उन्होंने खून से लथपथ इंदिरा जी को अपनी गोद में उठाया और एम्स अस्पताल ले गईं। लेकिन तब तक सब कुछ समाप्त हो चुका था। सोनिया गांधी बार-बार रोते हुए पुकार रही थीं- मां, हमें छोड़कर मत जाओ... मां, ऐसा मत करो... हम अकेले रह जाएंगे..।
खबर फैलते ही देशभर में सन्नाटा पसर गया। सड़कों पर, दफ्तरों में, गलियों में, हर जगह गम की लहर दौड़ गई।
हर देशवासी यही सोच रहा था- अगर मृत्यु पर किसी का अधिकार होता, तो लाखों लोग अपनी जान देकर भी उन इंदिरा गांधी को लौटा लाते, जिनका जीवन राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए समर्पित था। वे दलितों और अल्पसंख्यकों की मसीहा थीं।
समाचार एजेंसी पीटीआई के बाहर नोटिस बोर्ड पर लिखा था- ‘Prime Minister Indira Gandhi is no more.’
लोग इस पंक्ति का अर्थ समझना नहीं चाहते थे, क्योंकि यह मानना असंभव था कि भारत की लौह महिला अब नहीं रहीं।
शाम छह बजे ऑल इंडिया रेडियो से उनकी मृत्यु की औपचारिक घोषणा हुई। देश के सभी प्रमुख समाचार पत्रों ने विशेष संस्करण निकालकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। मुखपृष्ठों पर लिखा था-
‘खुश रहो अहले वतन, अब हम तो सफर करते हैं... तूफान से लाए हैं इस किश्ती को निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के।‘
हत्या से एक दिन पूर्व, उड़ीसा के भुवनेश्वर में उन्होंने अपने भाषण में कहा था-
‘मुझे मालूम है, एक दिन मेरी जान जाएगी।
मेरा जीवन लंबा रहा है, मैंने देश की सेवा की है।
पर जब भी मेरी जान जाएगी,
मेरे खून की एक-एक बूंद इस देश को मजबूत करेगी।‘
और सचमुच, उनका यह वाक्य इतिहास बन गया। जिनको अमर होना है, होकर रहते हैं। बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता। इंदिरा जी के खून की एक-एक बूंद ने भारत को और मजबूती प्रदान की है। इतिहास उनका अमर शहीदों में प्रमुखता के साथ स्मरण करता रहेगा। इंदिरा जी हमेशा शहीदों की दुनिया में सूर्य बनकर चमकती रहेंगी। अपने बलिदान की आभा से इस देश को हमेशा मजबूती एकता अखंडता और सद्भावना की माला में पिरोती रहेंगी।
इंदिरा गांधी की हत्या ने न केवल देश को झकझोरा, बल्कि विश्व राजनीति को भी प्रभावित किया। लेकिन यह भी सत्य है कि उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति, नेतृत्व और साहस आज भी भारत के हर नागरिक के लिए प्रेरणा है। वह केवल प्रधानमंत्री नहीं थीं- वह भारत की जान थीं, राष्ट्र की मां थीं और महिलाओं की अस्मिता का प्रतीक थीं। उनके जाने के बाद भी वह हर भारतवासी के हृदय में अमर हैं।
‘मेरी नजर में इतनी महान थीं इंदिरा,
यह हिंद जिस्म था और उसकी जान थीं इंदिरा।
अपने प्यारे वतन पर हर क्षण कुर्बान थीं इंदिरा,
इस धरा पर रहकर भी आसमान थीं इंदिरा।;
जय हिंद! जय भारत!! जय इंदिरा!!!
आइए हम और आप, सभी मिलकर देश की एकता, अखंडता और सद्भावना का संकल्प लें।
(लेखक राजीव गांधी बार एसोसिएशन, आगरा के अध्यक्ष, वरिष्ठ अधिवक्ता और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं।)




