बिहार चुनाव: राजनीतिक करवट से तय होगी पूर्वी भारत की दिशा, जनता की विकास संग सुरक्षा पर भी निगाहें

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 केवल एक प्रांतीय चुनाव नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति की धुरी साबित हो सकता है। यह चुनाव न केवल एनडीए और इंडिया गठबंधन की साख का इम्तिहान बनेगा, बल्कि 2026 में पश्चिम बंगाल और 2027 में उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों की राजनीतिक रूपरेखा भी तय करेगा। सामाजिक न्याय, हिंदुत्व, विकास, और सुरक्षा, इन चार आयामों के बीच झूलता यह चुनाव बिहार के मतदाताओं के विवेक और राष्ट्रवादी सोच की परख बनेगा।

Oct 21, 2025 - 19:49
Oct 21, 2025 - 20:44
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बिहार चुनाव: राजनीतिक करवट से तय होगी पूर्वी भारत की दिशा, जनता की विकास संग सुरक्षा पर भी निगाहें

-पीयूष गौतम-
बिहार विधानसभा चुनाव 2025  कई मायनों में राष्ट्रीय और प्रांती राजनीति को प्रभावित करेगा, क्योंकि 2026 में पश्चिम बंगाल और 2027 में उत्तर प्रदेश में भी विधान सभा चुनाव होने हैं। यही नहीं, पूर्वी भारत की सुरक्षा को भी यह चुनाव सुनिश्चित करेगा। इस चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की रीति-नीति, कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन की अंतर्कलह और मशहूर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की नवस्थापित पार्टी जनसुराज द्वारा उठाए हुए मुद्दे गहरा असर डालेंगे।
वहीं, एआईएमआईएम और अन्य छुटभैये दलों की कोशिशें मतदाताओं के मनोमिजाज पर क्या रंग जमाएंगी और अपने साइलेंट मतदान ट्रेंड से वो क्या गुल खिलाएंगे, इसका पता तो 14 नवंबर को ही चल पाएगा, क्योंकि राजनीतिक और शैक्षिक रूप से यह प्रदेश बहुत ही जागरूक है। महंगाई और बेरोजगारी से जूझ रहे आम बिहारियों के दिल में अब सामाजिक न्याय की छटपटाहट तो है, लेकिन इसके साथ ही हिंदुत्व की लहरें भी उफान मार रही हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि इस्लामिक देशों और चीन-अमेरिका के सहयोग से बनने वाले कथित 'ग्रेटर बांग्लादेश' से शांतिप्रिय बिहार भविष्य में गुजरात, राजस्थान, पंजाब और जम्मू-कश्मीर की तरह ही युद्धभूमि भी बन सकता है।
बिहार के लोगों को यह भी पता है कि उनके पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जिन अल्पसंख्यकों की राजनीति कर रहे हैं, उससे बांग्लादेश का षड्यंत्र सफल हो या न हो, लेकिन पूर्वी भारत निकट भविष्य में रक्तरंजित भी हो सकता है। इसलिए विकसित, समृद्ध और ज्ञान की संस्कृति की रक्षा के लिए बिहारवासी कुछ ठोस व कड़ा निर्णय भी ले सकते हैं। उन्हें पता है कि इंडिया गठबंधन के राजद, कांग्रेस, भाकपा माले, वीआईपी, वामपंथी दलों की विचारधारा भी पाकिस्तान-बांग्लादेश की सरकारों से काफी मिलती-जुलती है। इसलिए यदि इन्हें नहीं रोका गया तो संभव है कि भविष्य में ये लोग बिहार को भी उसमें शामिल करवा दें।
ऐसा इसलिए कि टीवी स्क्रीन और सोशल मीडिया पर इंडिया गठबंधन के नेताओं के जो हिन्दू विरोधी बयान और कार्यप्रणालियां सामने आती रहती हैं, उनसे बिहार के मतदाता अपने राज्य के भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं। बीते वर्षों में उन्होंने महसूस किया है कि राज्य में जंगलराज (2000-2005) का पर्याय बन चुका राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद का कुनबा और उनके सरदार पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, जनता दल यूनाइटेड के नेता व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सहयोग से ब्रेक के बाद सत्ता में आ जाते हैं, इसलिए इस बार ऐसा रणनीतिक मतदान किया जाए कि ऐसी किसी सियासी बात की संभावना भी न बचे।
बिहार से जुड़े सूत्र बताते हैं कि सूबे में भाजपा के अलावा जनसुराज का प्रदर्शन अच्छा हो सकता है, क्योंकि लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की कारगुजारियों से प्रबुद्ध बिहारी बहुत ही नाराज चल रहे हैं और ग्राम स्तर पर वे नए बिहार के निर्माण के लिए एक मुहिम चला रहे हैं। यह गैर धार्मिक और गैर जातीय मुहिम है, जिसका मकसद बिहार के विकास और किसी भी अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र से बिहार की सुरक्षा की बात उनके एजेंडे में है। यही वजह है कि राष्ट्रवादी भाजपा और उसके सहयोगियों के अलावा जनसुराज के प्रत्याशियों की ओर वे करवट ले रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि बिहार की जनता आपसी दांवपेंच से परेशान एनडीए के नेताओं और बिखरे या कई सीटों पर आपस में ही नूराकुश्ती करने वाले इंडिया गठबंधन के नेताओं के अलावा जो नया विकल्प मौजूद है, उसे ही इस बार मजबूत विपक्ष की जिम्मेदारी मिलने लायक जनसमर्थन दे सकती है, जिससे राष्ट्रवादी सरकार के बनने और जनहित के मुद्दे पर उसे सक्रिय करने की गारंटी मिल जाएगी। इसलिए सच कहूं तो राजनीतिक अहंकार और बुद्धिजीवियों की बिखरी टंकार के बीच बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की चुनावी लड़ाई दिलचस्प होने जा रही है।
जैसे-जैसे चुनाव प्रचार जोर पकड़ेगा, बुद्धिजीवियों की निर्दलीय और सर्वदलीय राजनीतिक मुहिम तेज होती जाएगी। सीट बंटवारे में जो कलह दिखाई दी, उसके पीछे भी इन्हीं बुद्धिजीवियों के हाथ की खबरें हैं। खासकर कांग्रेस के लिए नई राजनीतिक जमीन तैयार करने वाले बुद्धिजीवी तो इस बात पर अड़े हुए हैं कि किसी भी कीमत पर अपने दूरगामी राजनीतिक हितों से समझौता नहीं करना है। इससे स्पष्ट है कि यूपी में जो गलती 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने की थी, 2025 में वही गलती दुहराकर तेजस्वी यादव भी सियासी रूप से अप्रासंगिक हो जाएंगे। स्पष्ट है कि बिहार की नई राजनीतिक करवट से विकास और सुरक्षा दोनों की गारंटी मिलेगी।