जब रसोई की आंच बुझती है, तब रिश्ते ठंडे पड़ जाते हैं और परिवार टूटने लगते हैं

घर की रसोई का शांत हो जाना केवल खाना पकाने का बंद होना नहीं, बल्कि परिवार और समाज की जड़ों का कमजोर पड़ना है। अमेरिका इसका उदाहरण है जहां बाहर का खाना, व्यस्त जीवन और अकेलेपन ने परिवारों को तोड़ दिया। भारत भी अमेरिका की दिशा में बढ़ रहा है। हमें यह समझना होगा कि रसोई सिर्फ खाना नहीं, भावना है। घर की रोटी में मां का स्नेह, दादी की कहानी और परिवार की एकजुटता होती है। इसलिए चूल्हा जलाइए, परिवार को टेबल पर बुलाइए, क्योंकि घर तो चार दीवारें देता है, पर रसोई उसे परिवार बनाती है।

Oct 31, 2025 - 12:31
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जब रसोई की आंच बुझती है, तब रिश्ते ठंडे पड़ जाते हैं और परिवार टूटने लगते हैं
प्रो. पीके सिंह

-डॊ. पीके सिंह-

क्या आपने कभी सोचा है कि घर की रसोई का शांत हो जाना पूरे समाज के ढांचे को कैसे हिला सकता है? सुनने में अजीब लगता है, पर अमेरिका इस सच्चाई को भुगत चुका है। सन् 1970 के दशक तक वहां का हर घर एक सजीव परिवार था। दादा-दादी, मां-बाप और बच्चे, सब एक डाइनिंग टेबल पर बैठकर घर का खाना खाते थे। घर की रोटी, सूप, पाई सिर्फ पेट नहीं भरती थी, बल्कि वह भोजन मन को जोड़ता था, रिश्तों को गूंथता था, और घर को ‘होम’ बनाता था।

फास्ट फूड ने रसोई की जगह ले ली

1980 के बाद अमेरिका की तस्वीर बदल गई। फास्ट-फ़ूड, रेस्तरां और टेकअवे संस्कृति ने घर की रसोई पर कब्ज़ा कर लिया। इसके बाद खाना बनाने की जगह ऑर्डर किये जाने लगे। मां-बाप नौकरी की भागदौड़ में व्यस्त हो गए, बच्चे बर्गर-पिज़्ज़ा के चक्र में खो गए और दादा-दादी की कहानियां मोबाइल की स्क्रीन में दबकर रह गईं। उस समय विशेषज्ञों ने चेताया था- जिस दिन घर की रसोई कंपनियों को सौंप दी और बुजुर्गों-बच्चों की जिम्मेदारी सरकार पर डाल दी, उसी दिन परिवार बिखरकर कंपनियों की संपत्ति बन जाएगा, लेकिन किसी ने सुना नहीं और नतीजा सामने है।

बिखरते परिवार, सूनी चौखटें

सन् 1971 में अमेरिका के 71% घर पारंपरिक परिवार थे, जहां मां-बाप और बच्चे साथ रहते थे। आज यह आंकड़ा घटकर अब केवल 20% रह गया है। बाकी क्या बचा?

बुज़ुर्ग- वृद्धाश्रमों में।

युवा- अकेले किराए के फ्लैटों में।

शादियां- टूटती हुईं।

बच्चे- अकेलेपन और मानसिक तनाव के शिकार।

तलाक के आंकड़े भयावह हैं। पहली शादी में 50%, दूसरी में 67%, और तीसरी में 74% तलाक! ये सब साइलेंट किचन का नतीजा हैं। एक ऐसा घर जहां स्टोव ठंडा है और दिलों की गर्माहट बुझ चुकी है।

फास्ट-फ़ूड का दूसरा चेहरा- बीमार समाज

अमेरिका में अब हर दूसरी समस्या पेट से जुड़ी है। मोटापा, डायबिटीज़, हृदय रोग। फास्ट-फ़ूड की यह तथाकथित सुविधा एक धीमा जहर बन गई। स्वास्थ्य उद्योग अब इन्हीं बीमारियों से मुनाफा कमा रहा है। वहां के डॉक्टर कहते हैं कि अगर आप खुद नहीं पकाते, तो बीमारी आपके लिए पकाई जा रही है।

जापान और भूमध्यसागर से सीख लेने की जरूरत

जापान में आज भी परिवार एक साथ खाना बनाते और खाते हैं। यही उनकी लंबी उम्र और मजबूत पारिवारिक संस्कृति का रहस्य है। भूमध्यसागर के देशों में भोजन को पवित्र कर्म माना जाता है। वहां हर थाली में स्वाद के साथ संस्कार परोसे जाते हैं।

भारत के लिए चेतावनी

आज भारत भी अमेरिका के रास्ते पर है। बाहर का खाना, व्यस्त जीवन, ऑनलाइन ऑर्डर, और धीरे-धीरे बुझती रसोई। अगर हमने समय रहते रसोई को फिर से नहीं जलाया, तो हमारा परिवार भी सोसायटी फ्लैट की चारदीवारी में सीमित रह जाएगा।

रसोई सिर्फ़ खाना नहीं, भावना है

घर की रोटी में मां के हाथ का स्पर्श होता है।  दादी की कहानी की मिठास होती है और एक साथ बैठने का अपनापन होता है। वही तो घर को परिवार बनाता है। स्विगी–ज़ोमैटो सुविधा दे सकते हैं, पर संवेदना नहीं। स्विगी-जोमैटो से खाना आना शुरू होने के बाद घर धीरे-धीरे मकान तो रह जाता है, परिवार नहीं।

निर्णय आपका है – घर या सराय?

रसोई की आंच सिर्फ़ तवा नहीं गरम करती, वह दिलों को भी गरम रखती है।

तो आज ही चूल्हा जलाइए। परिवार को टेबल पर बुलाइए, क्योंकि शयनकक्ष घर देता है, पर रसोई परिवार बनाती है। फैसला आपके हाथ में है- आप घर बनाना चाहते हैं या सराय?

(लेखक आरबीएस कॊलेज बिचपुरी में प्रोफेसर हैं)

SP_Singh AURGURU Editor