ग्रीन पटाखे, रेड गुस्सा और गोल्डन दीवाली: सुप्रीम कोर्ट अप्रूव्ड फ्रीडम थैरेपी!
दीवाली सिर्फ पटाखों और रोशनी का त्योहार नहीं, बल्कि मन के बोझ को हल्का करने का अवसर है। ग्रीन पटाखे अब केवल प्रदूषण-मुक्त जश्न का प्रतीक नहीं, बल्कि भीतर के गुस्से और तनाव को बाहर निकालने की दिल की थैरेपी बन चुके हैं। दीवाली हमें सिखाती है कि असली रोशनी बाहर नहीं, भीतर जलानी चाहिए। मुस्कराकर, रिश्ते सहेजकर और नकारात्मकता को पीछे छोड़कर ज़िंदगी को फिर से उजाला देना ही इसका सच्चा अर्थ है।
-बृज खंडेलवाल-
भला हो टीवी के ज्योतिषियों का, हर हिन्दू त्यौहार अब कई दिनों तक मनता है। इससे मार्केट रोशन रहता है, सब अपनी अपनी सुविधा से हर्ष उल्हास में शामिल हो सकते हैं। मीडिया इतना high पिच पर ले जाता है कि अगर आप सेलिब्रेट नहीं करेंगे तो अपराध बोध के शिकार हो जाएंगे!
आज के अखबारों की हेडलाइंस पढ़िए — दिल गार्डन गार्डन हो रहा है!
सोने की खानें बिक रही हैं, ऑटोमोबाइल क्रांति दरवाजे पर दस्तक दे रही है, मिठाई वाले हाथ खड़े कर चुके हैं, और मॉल्स में ‘लूट सेल’ लगी है।
मार्केट जगमगा रहे हैं, जमा पूंजी फिर सर्कुलेशन में है, और रंग चाहे ब्लैक हो, व्हाइट या भगवा — मनी इज़ मनी!
भारत में आ चुकी है दीवाली — वो भी फुल ब्लास्ट बंपर सीजन के साथ!
और इस बार तो सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया है, चलो भाई, ग्रीन पटाखे फोड़ो — मगर पर्यावरण का ख्याल रखते हुए! वाह! अब तो दिल खुश हो गया।
अब बिना किसी अपराधबोध के रंग-बिरंगे, इको-फ्रेंडली पटाखों से अपनी सारी उदासी और जमा हुआ गुस्सा धुएं में उड़ा दो।
हर फूटता रॉकेट, हर चमकता अनार, मानो हमारे भीतर की हिंसा और तनाव को ऐसे निकाल देता है जैसे किसी प्रेशर कुकर की सीटी!
एक पल के लिए मन चिल्ला उठता है — फ्रीडम!
मर्द हो या औरत, बूढ़े हों या बच्चे — सब मिलकर नाचो, गाओ, ठुमके लगाओ।
आख़िर दीवाली का असली मतलब ही यही तो है — दिल खोलकर जियो!
हमारे बुजुर्गों को पता था कि इंसान के भीतर की निराशा, हताशा और हिंसा को बाहर निकालने का सबसे सस्ता और असरदार तरीका है — जश्न!
गुस्सा भी खाने के नमक की तरह है — ज़रूरत से ज़्यादा हो जाए तो स्वाद बिगाड़ देता है। ग्रीन पटाखे उसी गुस्से की भाप निकालते हैं — एकदम स्टीम इंजन की तरह। कल्पना करो, तुम्हारा तनाव उड़ता हुआ ग्रीन रॉकेट बन जाए और तुम मुस्कुरा दो — क्या बात है!
अब अगर जेब हल्की है तो चिंता मत करो
छत पर चढ़ो, पड़ोसियों के अनार और रॉकेट देखो, और उनके मज़े में शामिल हो जाओ। अभाव में भी प्रचुरता का एहसास — यही तो दीवाली का जादू है। शोर, रोशनी और खुशबू — ये सब किसी एक की नहीं, सबकी है!
हंसो, ताली बजाओ, और कहो — वाह, क्या सीन है!
दीवाली वो पल है जब नकारात्मकता को जलाना चाहिए, जो अंदर के इंसान को घुन की तरह खा रही है।
बाहर की चमक-दमक थोड़ी देर की है, लेकिन असली रोशनी भीतर है — जब दिल का अंधेरा मिटता है। आज हम सब किसी न किसी निराशा में डूबे हैं — असुरक्षा, गुस्सा, अकेलापन — पर दीवाली हमें याद दिलाती है कि अब भी ज़िंदगी में रौशनी बाकी है। हर ग्रीन पटाखा हमारी अंदरूनी आकाशगंगा को जगाता है, और मन की धूल साफ कर देता है।
तो इस दीवाली, अपनी भावनाओं को दबाओ मत — जी भरकर जियो! अगर जेब खाली है, तो दिल अमीर बना लो। हंसो, गाओ, और सारी नकारात्मकता को धुएं में उड़ा दो।
दीवाली सिर्फ बाहर की रोशनी का नहीं, दिल की सफाई का त्योहार है। अपनी शिकायतों, ग़ुस्सों और दुखों को जलाओ, जैसे रावण का दहन करते हैं — प्रतीकात्मक रूप से, ज़ाहिर है! और अगर कोई बोले “पॉल्यूशन”, तो मुस्कराओ और कहो — भाई, ये ग्रीन पटाखे हैं, सुप्रीम कोर्ट अप्रूव्ड — एक रात का जश्न, दिल की थैरेपी!
दीवाली हमें याद दिलाती है कि इंसान मूलतः एक जश्नप्रिय प्राणी है — दुख और थकान के बावजूद। तो इस बार, जश्न को खुलकर अपनाओ। मुस्कराहटों की लड़ी जलाओ, रिश्तों की सफाई करो, और थोड़ी देर के लिए दुनिया की शिकायतें भूल जाओ।
ग्रीन पटाखे फोड़ो — सावधानी से, मगर पूरे दिल से। जियो और जीने दो, क्योंकि जीवन छोटा है — पर दीवाली का आनंद अनंत है।
हैप्पी दीवाली, दोस्तों!
रोशनी फैलाओ — बाहर भी, और भीतर भी।




