आगरा के सांसद, विधायक इतने उदासीन क्यों हैं?

आगरा के नियोजित विकास के लिए दीर्घकालीन सोच, नीतियां और कार्ययोजनाएं बनाने की जिम्मेदारी सिर्फ प्रशासन की ही नहीं है। इस कार्य को अंजाम देने के लिए स्थानीय स्तर पर निर्वाचित सांसदों, विधायकों और पार्षदों के बीच नियमित संवाद भी अनिवार्य है। नेतृत्व और मतदाताओं के बीच बढ़ती संवादहीनता लोकतांत्रिक सशक्तिकरण को बाधित करती है। संप्रेषण खाई पाटने की जरूरत है।

Jan 21, 2025 - 11:00
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आगरा के सांसद, विधायक इतने उदासीन क्यों हैं?

-बृज खंडेलवाल-

आगरा से भारतीय जनता पार्टी के तीन सांसद (दो लोकसभा और एक राज्यसभा) हैं 12 विधायक (नौ विधानसभा और तीन विधान परिषद सदस्य), एक महापौर, एक जिला परिषद मुखिया भी भाजपा के हैं। सपा के राज्यसभा सदस्य को जोड़ लें तो आगरा में सांसदों की संख्या चार हो जाती है। इसी प्रकार शिक्षक सीट के एमएलसी भी आगरा के ही हैं। प्राप्त जानकारी के मुताबिक इन सम्मानित प्रतिनिधियों की एक भी औपचारिक बैठक आगरा में नहीं हुई है। निर्वाचित प्रतिनिधियों के बीच आपसी तालमेल और संवाद की कमी है। ईगो और अहम से ग्रसित नेता, कई बार एक दूसरे से कटते दिखाई देते हैं। 

"हमारे नेता राजनीतिक स्वार्थों में उलझे हुए हैं, जिससे शहर के विकास के लिए महत्वपूर्ण नीतियां और कार्य योजनाएं बनाने में कमी आ रही है। होना ये चाहिए कि महीने में दो बार सभी निर्वाचित गण एक प्लेटफार्म पर आएं और जनता से संवाद करें। ये कार्य अलग-अलग नहीं बल्कि सामूहिक तौर पर हो, तब ही दबाव बन सकेगा," कहते हैं आगरा के सामाजिक कार्यकर्ता।

राजनीतिक नेतृत्व का आपसी मतभेद न केवल उनकी पार्टी के भीतर गुटबाजी का संकेत है, बल्कि आगरा की प्रगति और विकास पर इसका नकारात्मक असर पड़ा है। एकजुटता की कमी के कारण, कोई भी मुद्दा जो आगरा की भलाई के लिए महत्वपूर्ण है, उस पर प्रभावी ढंग से चर्चा नहीं हो पाती।

इस स्थिति में, प्रभावी संवाद की कमी और व्यक्तिगत स्वार्थों की प्राथमिकता ने सिर्फ शहर के विकास को ही ठप नहीं किया, बल्कि आम जनता के मुद्दों पर ध्यान देने से भी उन्हें वंचित रखा है। सामूहिक तौर पर कोई ठोस योजना या पहल नहीं की गई है। यमुना बैराज, हाई कोर्ट बेंच, औद्योगिक विकास जैसे मुद्दों पर किसी प्रकार की समान दृष्टि या संवाद का अभाव है।

भारतीय राजनीति का स्वरूप कुछ ऐसा हो गया है कि प्रतिनिधियों का अधिकांश समय सामाजिक आयोजनों जैसे उदघाटन, उठावनी, मृत्यु भोज,  शादी-विवाह और जातिवादी स्वागत समारोह में व्यतीत होता है। इस प्रकार के आयोजनों में भाग लेना न केवल एक आवश्यक कार्य है, बल्कि यह वास्तविक राजनीति से ध्यान भटकाने का भी एक साधन बन गया है। जानकार लोग बताते हैं कि नेताओं का ज्यादा समय पुलिस स्टेशनों पर सुलह, राजीनामा कराने में व्यय होता है।

एक लंबे अरसे से नेताओं का पढ़ाई-लिखाई से ध्यान हट गया है। लेख या पुस्तकें लिखने के लिए वक्त और मानसिकता का अभाव है। एक जमाना था जब मधु लिमए, एचवी कामथ टाइप सांसद घंटों संसद की लाइब्रेरी में बिताया करते थे। उस वक्त कांग्रेस के एमपी सेठ अचल सिंह निशाने पर रहते थे। अब क्या स्थिति बदल गई है?

नेताओं की ठंडी उदासीनता के चलते आगरा के टूरिस्ट फ्रेंडली और मॉडर्न सिटी के रूप में विकसित होने की संभावनाएं नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रही हैं, क्योंकि यहां के राजनीतिक प्रतिनिधियों का ध्यान इस दिशा में नहीं है।

इस मुश्किल परिस्थिति में, यह जरूरी है कि जनता को अपने चुने हुए प्रतिनिधियों से सुझाव और अपेक्षाएं रखने का समर्थन किया जाए। जनता को संवेदनशील और लोक भावनाओं के प्रति जागरूक बनाना आवश्यक है। इसके लिए शहरी मुद्दों को सामने लाने के लिए जागरूकता अभियानों और संवाद मंचों की रूपरेखा बनानी होगी।

समाज को इस बात के लिए तैयार करना होगा कि उनके अधिकार और आवश्यकताएं सिर्फ चुनावों के दौरान ही नहीं, बल्कि हर समय महत्वपूर्ण हैं। अगर जनता अपने प्रतिनिधियों से सक्रिय संवाद स्थापित करती है, तो यह संभव है कि राजनीतिक नेता अपने व्यक्तिगत स्वार्थों का त्याग कर व्यापक हितों की दिशा में काम करना शुरू करें।

वास्तव में, आगरा के विकास के लिए एक ठोस दिशा में काम करने की आवश्यकता है, जो सिर्फ राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर सामूहिक सहयोग और एकता की दिशा में अग्रसर हो। स्थानीय स्तर पर एकजुटता स्थापित करके ही हम आगरा को एक आधुनिक, समृद्ध और टूरिस्ट फ्रेंडली शहर बना सकते हैं, जिसमें सभी नागरिकों की आवाज को सुना जा सके।

आगरा की धरोहर, संस्कृति और जनजीवन को संजीवनी देने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि यह शहर आने वाले समय में एक व्यापक और सुगढ़ भविष्य की ओर बढ़ सके। यह केवल निर्वाचित प्रतिनिधियों की जिम्मेदारी है, क्योंकि जनता ने इसी कार्य के लिए उनको चुना है।

SP_Singh AURGURU Editor