एक तरफ अनिवार्य शिक्षा और दूसरी ओर साधु वेश, बच्चों के साथ ये कैसा विरोधाभास

     आगरा। आगरा के चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट नरेश पारस इस बात को लेकर चिंतित हैं कि छोटे-छोटे बच्चों को साधु बनने के लिए अखाड़ों को दान में दिया जा रहा है। 18 साल से कम उम्र के बच्चों को कहीं भी रखने के लिए जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होता है। जिन अखाड़ों में छोटे-छोटे बच्चे साधु वेश में रह रहे हैं, उनका जेजे एक्ट में रजिस्ट्रेशन नहीं है।

Feb 4, 2025 - 13:18
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एक तरफ अनिवार्य शिक्षा और दूसरी ओर साधु वेश, बच्चों के साथ ये कैसा विरोधाभास
महाकुम्भ में पहुंचे बाल साधु।

-आगरा के चाइल्ड राइट्स एक्टिविस्ट ने उठाया ये सवाल तो एक्टिव हुआ राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग

प्रयागराज महाकुम्भ में छोटे-छोटे बच्चों को साधु वेश में देखकर विचलित नरेस पारस कहते हैं कि इन बच्चों से उनका बचपन छीना जा रहा है। यही नहीं इन्हें शिक्षा के मौलिक अधिकार से भी वंचित किया जा रहा है। बकौल नरेस पारस, संविधान में 6 से 14 साल उम्र तक बच्चों के लिए शिक्षा अनिवार्य है। अखाड़ों में साधु वेश में रह रहे बच्चे शिक्षा के मौलिक अधिक से भी वंचित कर दिए गए हैं।

अपनी इसी पीड़ा के साथ नरेस पारस ने पिछले दिनों राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को एक पत्र भेजकर बाल साधुओं की ओर ध्यान आकर्षित किया था। आयोग ने भी इस पर संज्ञान लेकर प्रयागराज के डीएम को एक पत्र भेजकर निर्देशित किया है कि महाकुम्भ में बाल साधु और भीख मांगने वाले बच्चों को मुक्त कराकर मुख्यधारा में लाएं।

खेलने-पढ़ने की उम्र में भस्म लगा रहे बच्चे

नरेश पारस का कहना है कि यह देखकर दुख होता है कि महाकुम्भ में बड़ी संख्या में बच्चे भीख मांग रहे हैं तथा तमाम बच्चे गेरूआ वस्त्र धारण कर बाल साधु के रूप में अखाड़ों में आए हुए हैं। पढ़ने लिखने और खेलने कूदने की उम्र में साधु बनकर कठित तपस्या कर रहे हैं। कड़कड़ाती ठंड में बिना कपड़ों के शरीर पर केवल भस्म लगाकर बैठे हैं।

चाइल्ट राइट्स एक्टिविस्ट नरेस पारस का कहना है कि बच्चों को उनके माता पिता ने ही साधु बनने के लिए अखाड़ा संचालकों को दान में दे दिया है। ये बच्चे कोई वस्तु नहीं है जिन्हें दान में दिया जा सके। यह कृत्य मानव तस्करी के दायरे में आता है। भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 143 (आईपीसी की धारा 370) के तहत अपराध है। किशोर न्याय (देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 का उल्लंघन है।

शिक्षा जैसे मौलिक अधिकार से वंचित

नरेस पारस का कहना है कि एक तरफ हमारा संविधान अनुच्छेद -21क के तहत छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा देने का प्रावधान देता है। दूसरी तरफ छोटे बच्चों को साधु बनाकर उन्हें इस मौलिक अधिकार से वंचित किया जा रहा है।

हरिद्वार कुंभ में हुई थी काउंसलिंग

वर्ष 2021 में उत्तराखंड हरिद्वार में आयोजित हुए कुम्भ मेले को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने कुम्भ को बाल हितैषी बनाने के लिए पहल की थी। इसके लिए अलग से मानक संचालन प्रकिया (एसओपी) बनाई गई गई थी। जगह-जगह पर चाइल्ड फ्रेंडली कॉर्नर बनाए गए थे। कुम्भ मेले में भीख मांगने वाले बच्चे और बाल साधुओं को चिन्हित कर उनको मुक्त कराकर उनकी काउंसलिंग कराई गई।

प्रयागराज महाकुम्भ मेले में भी मानक संचालन प्रक्रिया अपनाई जाए ताकि बच्चों के अधिकारों का उल्ल्घंन न हो सके।

SP_Singh AURGURU Editor