सात साल बाद लौट आई उम्मीद: जिसे सबने मरा मान लिया था, वह अपनों के बीच जिंदा लौटी
बरेली। जिसे समाज और परिवार ने मरा समझकर अंतिम संस्कार तक कर दिया था, वह महिला सात साल बाद जीवित मिली और अपनों के गले लगकर उनके आंसू और मुस्कान दोनों का कारण बनी। यह चमत्कार किया बरेली के मनोवैज्ञानिक शैलेश शर्मा ने, जिनके अथक प्रयासों से कासगंज की रहने वाली 55 वर्षीय मंदबुद्धि महिला शबाना को उसके भाई मोहम्मद ताहिर और खालिद से मिलवाया गया।

ऐसे हो पाई शबाना की पहचान
शबाना 12 दिसंबर 2018 को पीलीभीत के अमरिया क्षेत्र में बेसुध मिली थीं। प्रशासन के आदेश पर उन्हें नारी निकेतन, बरेली भेजा गया और बाद में मानसिक स्थिति ठीक न होने के कारण मानसिक चिकित्सालय, बरेली में भर्ती कराया गया। वहां वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. आलोक शुक्ला की देखरेख में इलाज चला।
'मनोसमर्पण' संस्था के संस्थापक शैलेश शर्मा ने लगातार काउंसलिंग की। इसी दौरान शबाना ने कुछ पारिवारिक जानकारियां दीं, जिनके आधार पर संपर्क हुआ कासगंज के गद्दयान मोहल्ला, जामा मस्जिद गली के निवासी ताहिर और खालिद से।
मृत मानकर कर चुके थे अंतिम संस्कार
भाई ताहिर ने बताया, बहन की खोज के लिए हमने हर दरवाजा खटखटाया, रिपोर्ट दर्ज कराई, लेकिन जब कुछ पता नहीं चला तो हमने उसे मृत मान लिया था। विधिवत अंतिम संस्कार भी कर दिया था, लेकिन बरेली से फोन आने पर विश्वास ही नहीं हुआ कि बहन जिंदा हो सकती है। जब मिले, तो आंखों में आंसू थे पर दिल में खुशी थी।
डॉक्टरों की पहल, इंसानियत की जीत
मानसिक चिकित्सालय की निदेशक डॉ. पुष्पा पंत त्रिपाठी ने कहा, अब मानसिक रूप से स्वस्थ हो चुके मरीजों को उनके परिजनों से मिलवाया जाएगा। इस कार्य में पुलिस और सामाजिक संगठनों का सहयोग लिया जाएगा।