शरद पूर्णिमा पर आगरा में चांद का नूर बरसता है, जानें यहां क्यों बढ़ जाता है आनंद ? धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व!

आगरा। हिंदू धर्म में हर साल आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णमासी को शरद पूर्णिमा मनाई जाती है। इस बार शरद पूर्णिमा 16 अक्टूबर को है। इस दिन धन की देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करने की परंपरा है। इस रात चंद्रमा पूरी तरह चमकता है यानी चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। इस दिन व्रत करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा पर पूजा करने से घर में सौभाग्य और समृद्धि आती है और चांदनी रात में खीर खाने से स्वास्थ्य लाभ होता है। आगरा के लिए यह दिन अत्यधिक खास होता है।

Oct 15, 2024 - 01:09
Oct 15, 2024 - 11:16
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शरद पूर्णिमा पर आगरा में चांद का नूर बरसता है, जानें यहां क्यों बढ़ जाता है आनंद ? धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व!

शरद पूर्णिमा पर गुरुद्वारा गुरु का ताल से नहीं बंटेगी दमा की दवा

शरद पूर्णिमा के मौके पर गुरुद्वारा गुरु का ताल में इस बार दमा की दवा का वितरण नहीं हो पाएगा। कोरोना काल में भी दो साल दवा का वितरण नहीं हो पाया था।यह दवा गुरुद्वारे के मुखी संत बाबा प्रीतम सिंह तैयार करते हैं। इस बार स्वास्थ्य कारणों से बाबा प्रीतम सिंह यह दवा तैयार नहीं कर पाए हैं, इसीलिए गुरुद्वारे की ओर से पहले ही लोगों को सूचित कर दिया गया है कि वह दवा के लिए गुरुद्वारा ना आएं। दमा के रोगियों के लिए दवा तैयार न कर पाने के लिए बाबा प्रीतम सिंह की ओर से खेद भी जताया गया है।

शरद पूर्णिमा पर गुरुद्वारा गुरु का ताल पर हर साल अस्थमा के रोगियों को दवा दी जाती है। दवा के लिए देश के दूर स्थानों से मरीज आते हैं। बताया जाता है कि गुरुद्वारा गुरु का ताल में सन 1971 में पहली बार रोगियों को दवा दी गई थी। यह दवा अस्थमा और एलर्जी के रोगियों को दी जाती है। दवा को खीर में मिलाकर दिया जाता है। मिट्टी के सकोरे में खीर और दवा मिलाकर रोगियों को दी जाती है। इसके बाद गुरुद्वारे में ही एक-दो किलोमीटर नंगे पैर चलने को कहा जाता है। रोगी का शरीर देखकर ही दवा की मात्रा निर्धारित की जाती है। दवा खाने के बाद कई परहेज हैं जैसे तेल, खट्टा, वसा की चीजों से दूरी रखनी होती है। 

ताजमहल पर बरसता है चांद का नूर

आगरा में ही ताजमहल पर शरद पूर्णिमा के दिन चांद का नूर बरसता है। इस बार शरद पूर्णिमा पर 15 से 19 अक्टूबर तक चार दिन ही ताज रात्रि दर्शन होंगे। 18 अक्टूबर को शुक्रवार होने से ताजमहल बंद रहेगा और रात्रि दर्शन नहीं होंगे। पुराने लोग बताते हैं कि वर्षों पूर्व शरद पूर्णिमा पर ताजमहल रात भर खुलता था। मेले जैसा नजारा होता था। मगर बाद में यह सब बंद हो गया। अभी भी सीमित है। पहले मुख्य मकबरे पर पर्यटकों के उतरने के लिए रेलिंग हटाकर लकड़ी के स्लीपर आदि से रैंप बनाया जाता था। सीढ़ियों से पर्यटक ऊपर जाते थे और रैंप से नीचे उतरा करते थे। लेकिन अब लाल पत्थरों तक ही जा पाते हैं। वहीं से रात्रि दर्शन होता है।

लंबे समय तक बंद रहा था रात्रि दर्शन

सुरक्षा कारणों से वर्ष 1984 से 2004 तक ताजमहल रात्रि दर्शन बंद रहा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नवंबर, 2004 से ताजमहल का रात्रि दर्शन दोबारा शुरू हुआ, लेकिन पाबंदियां लग गईं। माह में पूर्णिमा पर पांच दिन (पूर्णिमा से दो दिन पूर्व और दो दिन बाद तक) रात्रि दर्शन होता है।

ऑनलाइन बुक कर सकते हैं टिकट

वर्तमान में एक दिन में अधिकतम 400 पर्यटक ताजमहल रात्रि दर्शन कर सकते हैं। 50-50 पर्यटकों के बैच को रात आठ से 12 बजे तक आधा-आधा घंटे के स्लाट में स्मारक में प्रवेश दिया जाता है। इसके लिए एएसआई की वेबसाइट से ऑनलाइन टिकट एक दिन पूर्व तक बुक की जा सकती हैं। विदेशी पर्यटक का टिकट 750 रुपये, भारतीय पर्यटक का टिकट 510 रुपये और बच्चों का टिकट 500 रुपये हैं। मेहताब बाग स्थित ताज व्यू प्वाइंट से भी ताज रात्रि दर्शन किया जा सकता है। 

बांके बिहारी इस तरह देते हैं दर्शन

हर साल शरद पूर्णिमा के शुभ अवसर पर रात में चंद्रमा की धवल चांदनी के प्रकाश में श्रद्धालुओं को बांके बिहारी बंसी बजाते हुए दर्शन देते हैं। इस दौरान प्रभु महारास की मुद्रा में होते हैं। सालभर में शरद पूर्णिमा के दिन ही बांके बिहारी बंसी धारण कर दर्शन देते हैं। इस दौरान मंदिर में खास रौनक देखने को मिलती है।

SP_Singh AURGURU Editor