आज है अक्षय आंवला नवमी, आंवला वृक्ष की पूजा और दान महापाप से भी छुटकारा दिलाता है

कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी "अक्षय आंवला नवमी" के नाम से विख्यात है। इस बार यह त्यौहार आज 10 नवंबर को है। आंवला नवमी को ही सतयुग का प्रारंभ हुआ था। इस तिथि को गौ, स्वर्ण, वस्त्र आदि दान देने से ब्रह्महत्या जैसे महापाप से भी छुटकारा मिल जाता है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है।

Nov 10, 2024 - 10:07
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आज है अक्षय आंवला नवमी, आंवला वृक्ष की पूजा और दान महापाप से भी छुटकारा दिलाता है

पूजा विधि

 प्रातः स्नान करके शुद्धता से आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। फिर उसकी जड़ में दुग्धधारा गिराकर चारों ओर कच्चा सूट लपेटें तथा कपूर वर्तिका से आरती करते हुए सात परिक्रमा करें। तत्पश्चात ब्राह्मण एवं ब्राह्मणी को भोजन कराकर दक्षिणा दें। फिर स्वयं भोजन करें। भोजन में आंवला अवश्य होना चाहिए।

प्रचलित कथा

एक राजा था जो रोज एक मन सोने के आंवला दान करता था और बाद में वह भोजन करता था। एक दिन उसके बेटों बहुओं ने देखा कि रोज इतने सीने के आंवले का दान करेंगे तो सारा धन खत्म हो जाएगा, इसलिए इनका दान बंद करा देना चाहिए। पुत्र राजा के पास पहुंचा और बोला कि आप तो सारा धन लुटा देंगे, इसलिए आप आंवले का दान करना बंद कर दो।

तब राजा और रानी जंगल में जाकर बैठ गए। वहां आंवलों का दान नहीं कर सके, इसलिए उन्होंने कुछ भी नहीं खाया। तब भगवान ने सोचा कि अगर मैंने इसका सत्त नहीं रखा तो दुनिया में मुझे कोई नहीं मानेगा। तब भगवान ने राजा से सपने में कहा कि तुम उठो और पहले जैसी रसोई हो गई है और आंवले का वृक्ष लगा हुआ है।

तुम दान करो और भोजन कर लो। राजा रानी ने उठकर देखा तो पहले जैसा राजपाट हो गया है  और सोने के आंवले वृक्ष पर लदे हुए हैं। राजा और रानी फिर से सवा मन  आंवले का दान करने लगे। वहां पर बैठे-बहू के घर कंगाल हो गए। आसपास के लोगों ने कहा कि जंगल में एक आंवलिया राजा है सो तुम वहां चले जाओ तो तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा। 

वह दोनों वहां पहुंचे गए। वहां पर रानी अपने बेटे और बहू को देखकर पहचान गई और अपने पति से बोली कि इन लोगों से काम तो कम कराएंगे और मजदूरी ज्यादा देंगे। एक दिन रानी ने अपनी बहू को बुलाकर कहा कि मुझे सिर सहित नहला दे। बहू सिर धोने लगी तो बहू की आंखों में से पानी निकलकर रानी की पीठ पर पड़ा। तब रानी बोली कि मेरी पीठ पर आंसू क्यों गिरे हैं, मुझे बताओ।

बहू बोली कि मेरी भी सासू मां की पीठ पर ऐसा ही मस्सा था और हमने उन्हें घर से निकाल दिया। हमारे सास ससुर एक मन आंवले का दान करते थे। हमने उन्हें भगा दिया। तब सास बोली कि हम ही तुम्हारे सास ससुर हैं। तुमने हमें निकाल दिया था, परंतु भगवान ने हमारा सत्त रखा है। हे भगवान! आपने जैसा राजा-रानी का सत्त रखा वैसा सबका रखना। कहते सुनते सारे परिवार और समाज का सत्त रखना।

SP_Singh AURGURU Editor