नई जिम्मेदारी, पुरानी विरासत: आकाश आनंद के सामने बसपा को पुनर्जीवित करने की चुनौती

बहुजन समाज पार्टी ने आकाश आनंद को दोबारा प्रमुख भूमिका में लाकर दलित राजनीति को पुनर्जीवित करने की कोशिश की है। उत्तर प्रदेश में बसपा का जनाधार लगातार घट रहा है, जिस पर सपा और आजाद समाज पार्टी की नजर है। आकाश के सामने पार्टी कैडर में भरोसा लौटाने, वोट बैंक बचाने और बिहार जैसे राज्यों में पार्टी को स्थापित करने की चुनौती है। यदि वे इन लक्ष्यों में सफल होते हैं तो बसपा को नया जीवन मिल सकता है।

May 22, 2025 - 13:39
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नई जिम्मेदारी, पुरानी विरासत: आकाश आनंद के सामने बसपा को पुनर्जीवित करने की चुनौती

 बहुजन समाज पार्टी के लिए यह समय राजनीतिक पुनरुत्थान की घड़ी है, और इसकी कमान फिर से मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद के हाथों में सौंप दी है। चीफ कोऑर्डिनेटर पद के साथ पार्टी में नंबर दो की सक्रिय भूमिका में लाकर मायावती ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह पार्टी को अगली पीढ़ी के नेतृत्व के लिए तैयार कर रही हैं। लेकिन यह भूमिका जितनी सम्मानजनक है, उतनी ही चुनौतीपूर्ण भी।

उत्तर प्रदेश में पार्टी का जनाधार लगातार खिसक रहा है। 2019 के लोकसभा चुनावों में बसपा को लगभग 10 प्रतिशत से कम वोट शेयर मिला, जो कैडर आधारित इस पार्टी के लिए बेहद चिंताजनक है। इस सब पर मायावती की चुप्पी और संगठन की जमीनी पकड़ कमजोर होने के कारण दलित वोट बैंक भी अनिश्चितता की स्थिति में आ चुका है।

इसी राजनीतिक खालीपन को समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फार्मूले के सहारे भरना चाहते हैं। उन्होंने आगरा में सपा सांसद रामजीलाल सुमन के घर हुए प्रदर्शन को भी इसी रणनीति के तहत हवा दी, ताकि यह संदेश जाए कि बीएसपी अब कमजोर हो चुकी है और दलित समाज को नए नेतृत्व की जरूरत है।

उधर, आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष और सांसद चंद्रशेखर आज़ाद भी उत्तर प्रदेश में एक उभरती ताक़त के रूप में दलित राजनीति में गहरी पैठ बना रहे हैं। चंद्रशेखर ने अपने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उन सुनील चित्तौड़ को जिम्मेदारी दे रखी है, जिन्होंने बसपा में अहम पदों पर लम्बा वक्त बिताया है और उन्हें संगठन का खासा अनुभव है। ऐसे में आकाश आनंद के समक्ष एक ओर जहां बसपा कार्यकर्ताओं का विश्वास दोबारा जीतने की चुनौती है, वहीं दूसरी ओर पार्टी के राजनीतिक स्पेस में हो रहे अतिक्रमण को रोकना भी उनका प्रमुख लक्ष्य है।

इन सबके बीच मायावती ने आकाश आनंद को बिहार विधानसभा चुनाव के लिए स्टार प्रचारक के रूप में उतारा है। बसपा यहां अकेले लड़ रही है। यहां सीट जीतने से कहीं ज्यादा यह लक्ष्य नजर आता है कि बसपा अपना वोट प्रतिशत बढ़ाकर यह संदेश देना चाहती है कि दलित समाज का एक बड़ा हिस्सा अब भी बसपा के साथ है। यह भी मायावती की उस बड़ी रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वह आकाश को सिर्फ यूपी ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी स्थापित करना चाहती हैं।

आकाश आनंद के सामने तीन बड़ी कसौटियां

बसपा के चीफ कोआर्डिनेटर आकाश आनंद को पार्टी कैडर में विश्वास की पुनर्स्थापना करनी है। दलित वोट बैंक की रक्षा के साथ ही उसे विस्तार भी देना है। बिहार जैसे नए राज्यों में पार्टी को राजनीतिक विकल्प के रूप में खड़ा करना।

इनमें से कोई भी काम इतना आसान नहीं है, लेकिन मायावती के मार्गदर्शन में अगर आकाश इन मोर्चों पर खरे उतरते हैं तो न सिर्फ़ बसपा को नई ऊर्जा बल्कि दलित राजनीति को भी एक नई दिशा मिलेगी।

SP_Singh AURGURU Editor