भाजपा में महामंत्री पद के लिए जुगाड़, जाति और जनाधार का हथियार के रूप में इस्तेमाल
भाजपा में संगठनात्मक गतिविधियां भले ही थम गई हों, लेकिन महत्वाकांक्षाएं दौड़ रही हैं, जिलों में पदों के लिए लॉबिंग ज़ोरों पर है, और शक्ति संतुलन का नया खेल तैयार हो रहा है। महामंत्री पद इस पूरे समीकरण का सबसे अहम केंद्र बन गया है। आने वाले दिनों में भाजपा की जिला कार्यकारिणियों का गठन, न केवल स्थानीय राजनीति बल्कि 2027 की चुनावी ज़मीन भी तय कर सकता है।

आगरा। भारतीय जनता पार्टी इन दिनों एक अजीब से दोराहे पर खड़ी दिखाई दे रही है। ऊपरी स्तर पर संगठनात्मक गतिविधियों में ठहराव, लेकिन स्थानीय स्तर पर पद और प्रतिष्ठा की होड़ में जबर्दस्त गर्मी। खासकर महामंत्री पद को लेकर मची दौड़, भाजपा के आंतरिक समीकरणों और जमीनी राजनीति की हकीकत को उजागर कर रही है।
क्यों थमीं संगठन की गतिविधियां?
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने पार्टी के संगठनात्मक चुनावों की गतिविधियों पर ब्रेक लगा दिया था। उस वक्त कई प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव होने थे और इसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की तैयारी थी। लेकिन पहलगाम हमले के बाद सुरक्षा और राजनीतिक माहौल की संवेदनशीलता को देखते हुए पार्टी नेतृत्व ने इस प्रक्रिया को अनौपचारिक विराम दे दिया था।
हालांकि, यह विराम केवल केंद्रीय और प्रांतीय स्तर पर है। स्थानीय स्तर पर राजनीतिक गोटियां बिछाई जा रही हैं, खासकर जिला कार्यकारिणी के गठन को लेकर।
महामंत्री पद: नए शक्ति संतुलन की कुंजी
भाजपा के ढांचे में जिलाध्यक्ष के बाद सबसे अहम पद महामंत्री का माना जाता है। यह न केवल राजनीतिक सक्रियता का केंद्र होता है, बल्कि संगठन में पकड़ और भविष्य की संभावनाओं का संकेत भी। यही कारण है कि जो नेता जिलाध्यक्ष पद की दौड़ में पिछड़ गए, वे अब महामंत्री की कुर्सी के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं।
बड़ी समस्या यह है कि जिला स्तर पर महामंत्री के केवल चार पद होते हैं, जबकि दावेदारों की संख्या दर्जनों में है। यह स्थिति तू डाल-डाल, मैं पात-पात वाली रणनीतियों को जन्म दे रही है। चूंकि एक जिला इकाई में चार महामंत्री बनाए जाएंगे, इसलिए आगरा को ही देखें तो जिला और महानगर यूनिट में पार्टी आठ उन जातियों के नेताओं को संतुष्ट कर सकती है जो जिलाध्यक्ष पद से वंचित हुए हैं। इसमें भी पेंच ये फंसेगा कि पार्टी जिन जातियों को समायोजित करना चाहेगी, उस जाति के किस चेहरे को मौका मिलेगा क्योंकि एक-एक जाति के तमाम बड़े चेहरे महामंत्री पद के दावेदार हैं।
जातीय गणित और लॉबिंग का महायुद्ध
पार्टी सूत्रों के अनुसार, महामंत्री पद पर भी कास्ट बैलेंस को ध्यान में रखकर मनोनयन किया जाएगा। दरअसल, जिला इकाइयों में जातिगत असंतुलन को संतुलित करने के लिए महामंत्री पद को ‘बफर’ की तरह इस्तेमाल किया जाता है। यही कारण है कि जिलाध्यक्ष पद से वंचित कई जातियों से ताल्लुक रखने वाले नेताओं की लॉबिंग सांसदों, विधायकों और संगठन के बड़े नेताओं के दरवाजे पर गुपचुप तरीके से चल रही है।
सिर्फ महामंत्री ही नहीं, पूरी कार्यकारिणी पर जंग
महामंत्री के अलावा उपाध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष जैसे पदों को लेकर भी हलचल कम नहीं है। कई स्थानीय नेता अपने राजनीतिक भविष्य की बुनियाद इन्हीं पदों पर टिकी देख रहे हैं। इनके लिए ‘जुगाड़, जाति और जनाधार’, तीनों हथियार इस्तेमाल में हैं। जिला इकाइयों में महामंत्री के जहां चार पद होते हैं, वहीं उपाध्यक्ष और मंत्री के आठ-आठ पद होते हैं। इसके बाद कोषाध्यक्ष का एक पद भी अहम माना जाता है। आगरा जिला और महानगर इकाई में उपाध्यक्ष और मंत्री पद पर 16 नेताओं को समायोजित किया जा सकेगा। हालांकि इन 16 नामों का चयन करने में भी पार्टी को खासी मशक्कत करनी पड़ेगीय़
आगरा में हालात और भी पेचीदा
आगरा के जिलाध्यक्ष प्रशांत पौनिया और महानगर अध्यक्ष राजकुमार गुप्ता के सामने चुनौती दोहरी है। उन्हें न केवल स्थानीय महत्वाकांक्षाओं को संतुलित करना है, बल्कि पार्टी नेतृत्व के इशारों और सत्ता पक्ष के निर्देशों का भी पालन करना है। कार्यकारिणी के गठन में पारदर्शिता और प्रभावशीलता के बीच संतुलन बनाना बेहद कठिन होगा। वैसे भी यह सर्वविदित है कि अंतिम मुहर प्रदेश नेतृत्व द्वारा ही लगाई जाएगी।