हौले-हौले ही सही, सपा के वोट बैंक में घुस रही कांग्रेस
लोकसभा चुनाव के दौरान सपा और कांग्रेस के बीच हुआ गठजोड़ अब शह और मात की शक्ल लेता दिख रहा है। दोनों दलों के रिश्तों में पहले जैसी गरमाहट नहीं दिखती। कांग्रेस धीरे-धीरे अपने पुराने वोट बैंक को हासिल करने के प्रयासों में जुट गई है तो सपा इससे चौकन्ना हो उठी है।

एसपी सिंह
लखनऊ। लगता है समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के रिश्ते निरंतर ठंडे होते जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव के बाद दोनों दलों की जुगलबंदी ऐसी दिख रही थी जैसे दो शरीर एक जान। जबसे सपा की ओर से यह संकेत दिया गया है कि वह यूपी की दस विधान सभा सीटों के उप चुनाव में कांग्रेस के साथ समझौता करने में कोई रुचि नहीं रखती, कांग्रेस भी चौकन्नी हो गई है। हौले-हौले ही सही, कांग्रेस अब सपा के उस वोट बैंक को साधने में जुट गई है जो कभी उसका हुआ करता था।
सपा-कांग्रेस गठबंधन को लोकसभा चुनाव में उम्मीद से भी ज्यादा सफलता मिली थी। सपा ने 37 तो कांग्रेस ने छह सीटें जीतकर राज्य की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा को तगड़ा झटका दिया था। इसके बाद दोनों ही दलों के नेता और ज्यादा पींगें बढ़ाने लगे थे। सपा को लगता था कि उसकी वजह से कांग्रेस को यूपी में छह सीटें मिली हैं, इसलिए उसने हरियाणा के विधान सभा चुनाव को लेकर कांग्रेस से अपेक्षा पाल ली। सपा ने हरियाणा में गठबंधन के तहत पांच सीटें मांग लीं। हरियाणा कांग्रेस के नेताओं ने सपा को यह कहकर आईना दिखा दिया था कि सपा का यहां कोई जनाधार नहीं है और सपा-कांग्रेस का गठबंधन तो लोकसभा चुनाव के लिए था।
सपा के लिए कांग्रेस की ओर से यह दूसरी बार पैदा की गई अपमानजनक स्थिति थी। पहले मध्य प्रदेश और अब हरियाणा में कांग्रेस ने सपा को भाव नहीं दिया था। कांग्रेस ने सीटें नहीं दीं और सपा हरियाणा के चुनाव से पीछे हट गई। इसकी प्रतिक्रिया भी जल्द सामने आ गई जब सपा मुखिया के नजदीकी लोगों ने साफ तौर पर कह दिया कि यूपी के उप चुनाव में हम कांग्रेस के साथ पैक्ट करने में कोई रुचि नहीं रखते। सपा को अब कांग्रेस के साथ पैक्ट में दूरगामी दुष्परिणाम नजर आने लगे हैं।
शायद सपा नेतृत्व ने यह समझ लिया है कि कांग्रेस उससे पैक्ट कर उस मुस्लिम वोट बैंक में घुसपैठ कर रही है जो लम्बे समय से कांग्रेस से दूर है और सपा को समर्थन दे रहा है। अखिलेश के नजदीकी सूत्रों ने जब कांग्रेस से दूरी बनाने का संकेत दिया तो कांग्रेस भी समझ गई कि अब उसे अपने बूते ही आगे बढ़ना है।
लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस को यह लगने लगा है कि उसके खोए हुए दो बड़े वोट बैंक उसे वापस मिल सकते हैं। लोकसभा चुनाव में सपा भले कहे कि कांग्रेस को उसने छह सीटें दिलवाई हैं। हकीकत यह है कि दोनों दलों ने एक-दूसरे का मत प्रतिशत को बढ़ाया है। सपा का यादव मुस्लिम समीकरण प्रभावी था तो इस गठबंधन को मिले दलित वोटों में कांग्रेस का योगदान था। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने संविधान की लाल किताब दिखा-दिखाकर संविधान और आरक्षण के खतरे के बारे में जो कहा, उसका असर दलित मतदाताओं पर हुआ और उसका लाभ सपा के प्रत्याशियों को भी मिला।
कांग्रेस नेतृत्व मान रहा है कि दलित उसके साथ लौटने लगे हैं। जरूरत मुस्लिमों को और जोड़ने की है। आने वाले चुनावों में अगर सपा द्वारा आंखें तरेरी जाती हैं तो कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है। ऐसे में कांग्रेस ने खुद ही मुस्लिमों में पैठ बढ़ाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं।
बीते कल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय भदोही के सपा विधायक जाहिद बेग के आवास पर जाकर उनसे मिले। मुलाकात तो कोई भी किसी से कर सकता है, लेकिन इस मुलाकात के मायने समझिए। विधायक बेग के आवास पर पिछले दिनों उनके घर में काम करने वाली एक किशोरी ने आत्महत्या कर ली थी। इस मामले में विधायक बेग को कोर्ट में सरेंडर करना पड़ा था।
इस पूरे प्रकरण में समाजवादी पार्टी की ओर से चुप्पी साध ली गई। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव तो दूर, सपा का कोई दूसरा बड़ा नेता न तो इस मामले में बोला और न ही विधायक जाहिद बेग से मिला। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने इस कमी को पूरा कर दिया। बेग के घर जाने से पहले अजय राय ने एक बयान देकर यह भी ऐलान कर दिया कि संकट के इस समय में कांग्रेस पार्टी विधायक बेग के परिवार के साथ खड़ी है।
अजय राय के इस कदम के मायने समझे जा सकते हैं। कांग्रेस साफ तौर पर मुस्लिमों को संदेश दे रही है कि जो सपा अपने विधायक का भी साथ नहीं दे रही, कांग्रेस उसके साथ खड़ी है। अजय राय के इस कदम से समाजवादी पार्टी नेतृत्व में निश्चित रूप से बौखलाहट पैदा होगी जो दोनों दलों के रिश्तों पर बुरा असर डाल सकती है।