श्रद्धालुओं के समंदर लठामार होली की महिमा और बढाई
बरसाना। आज लाखों श्रद्धालुओं की जुवां पर राधे-- राधे के जयकारे से श्री जी धाम बरसाना का पांच किलो मीटर के व्यास के गूंजायमान हो गया। हर कोई राधे--राधे कहकर गुलाल लगाने में मस्त नजर आ रहा था। रंग और गुलाल ने सभी के चेहरों को बदरंग कर दिया। रंग से सराबोर हुए श्रद्धालुओं को पहचानना मुश्किल हो रहा था। प्रसिद्ध लठामार होली में में देश विदेश से आये लाखों श्रद्धालुओं ने सुबह होते ही राधे राधे के जयकारे लगाते हुए गहवर वन की परिक्रमा लगाई। इस दौरान श्री जी भक्त राधे-राधे कहकर गुलाल लगाने में मदमस्त हो गए। श्रद्धालुओं में होली रंग इस कदर सिर चढ़कर बोला कि वह अपनी सुधबुध भूलकर मंदिर व बरसाने की गलियों में रमड़ने लगा। जहां पुलिस वाले लाख धक्के देकर भगाएं लौट फिर के उसी स्थान पर जाकर होली खेलने को आतुर नजर आए। श्रद्धालु राधे धुन में रमकर अमीर गरीब के भेदभाव को भूलकर एक दूसरे पर गुलाल लगा रहे थे।
होली देख सूर्य चन्द्र समय की गति
बरसाना। ‘‘ऐसो रंग बरस रहौ ब्रज बरसाने में, जो तीन लोकन में नाए’’। जीहां राधा रानी की जन्मस्थली बरसाना में आजकल ऐसा ही रंग बरस रहा है। जो तीनों लोको में कही नही बरस रहा है। कस्बे के लोग होली की मस्ती में मदमस्त नजर आ रहे थे। यहां की होने वाली विश्व प्रसिद्ध लठामार रंगीली होली का बरसाना की गोपियां बेसब्री से इतंजार करती हुरियारिनों का इंतजार खत्म होने घड़ी जैसे ही आई तो सबरी रंगीली गली राधा कृष्ण के जयकारों से गूंजने लग गई। इस अलौकिक अद्भुद नजारे को देखने के लिए देव किन्नर रिषि मुनि सभी लालायित रहते हैं। ऐसी दिव्य प्रेम से भरी अद्भूत होली को देखने के लिए स्वयं सूर्य भगवान भी अपनी गति रोकर इस अनोखे पल का आन्नद उठाते है। तो चंद समय से पहले उदय होकर लठामार होली को देखने को आतुर रहते हैं। यहां तक देव लोक के सभी देवतागण भी प्रेम भरी लठामार रंगीली होली को देखने के लिए आकाश में उपस्थित होते है।
भगवान श्रीकृष्ण की आल्हादिनी शक्ति राधा रानी के निज धाम बरसाना में होली उत्सव की धूम मची हुई है। जिस वक्त सोलह सिंगार कर हुरियारिने हाथ में लठ्ठ लिए नन्दगांव के हुरियारों पर लठ्ठ बरसाती है। तो मानो ऐसा लगता है कि स्वयं रासेश्वरी श्रीराधा जी अपने माखन चोर श्रीकृष्ण के साथ होली खेल रही हो। इस दिव्य प्रेम की रसभरी होली को देखने के लिए
श्रद्धालु रंग बिरंगे परिधानों में ऐसे प्रतीत होते है कि मानो आकाश में इन्द्र-धनुष की छटा दिखाई दे रही हो। यहां तक प्रिया-प्रियतम की इस अद्भूत रंगीली होली को देखने के लिए स्वयं ब्रह्मा, शंकर, विष्णु तथा अन्य देवतागण भी स्वर्गलोक, ब्रह्मलोक, कैलाश व बैकुण्ठ आदि अपने धामों को छोड़कर होली का आन्नद लेने के लिए बरसाना धाम में आये हो। लेकिन कुछ महानुभावो का मानना है कि होली फूलो से तथा अबीर गुलाल, रंग, कुमकुम आदि से होनी चहिए। फिर यह लाठी से क्यों होती है। इस लठामार होली का वर्णन वाणियों में पाया गया है और इसका अनुभव भी किया गया है। ‘‘कनक छड़ी छूटत छैल पर’’ लियौ हाथन में फूलन की छड़ी, ठाड़ी रंगीली गली बृषभानु की लली। संग में सोहै सब प्यारी अलि, अबीर-गुलाल की भरके झोली। प्यारे संग प्यारी जूॅ खेले होली, मदमाती इठलाती रस मैं चली। ‘‘लिए हाथन में फूलन की छड़ी’’ इस अद्भूत लठामार रंगीली होली के रंग में सरोबर होने के लिए श्रद्धालु ललायित दिखाई देते है। मान्यता है कि सूर्य चन्द्रमा भी राधाकृष्ण की दिव्य प्रेममयी रंगीली होली को देखने के लिए क्षणभर अपनी गति रोक देते है। ‘‘थकित भये रवि चन्द्र भी अहो हरि होली है’’ जब तक यह होली होती है तब तक सूर्य नारायण भी अपना रथ रोकर अस्ताचत को जाना भूल जाते है। और होली का आन्नद लेते है। यहा तक की चन्द्रमा भी आकाश में दिखाई पड़ जाते है। देर शाम तक होली होती है। जिसके पश्चात राधाकृष्ण के जयघोष के साथ होली का समापन होता है। उसके तुरन्त बाद ही सूर्य नरायण अस्त हो जाते है। और चारों और अन्धेरा हो जाता है। यह है ब्रज बरसाने की अद्भूत लठामार रंगीली होली की महिमा।
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परंपरागत वेशभूषा में दिखे सभी हुरियारे - हुरियारिनें
बरसाना। बरसाना ब्रज मंडल के साथ पूरे भारत वर्ष में आधुनिकता ने अपने पैर पसार लिए हो परन्तु बरसाना नन्दगांव मेें होने वाले प्रमुख पर्वों पर यहो के वाशिंदे अपनी परंपरगत भेश भूषा कुर्ता धोती सिर पर पगडी धारण कर भांग की तरंग के बीच झूमते गाते नन्दगांव के हुरियारे और बरसाना की हुरियारिने लंबे घूंघट में पूरे साज श्रंगार से सजी धजी औरतें आकर्षण का केंद्र रहीे। दोनो तरफ से चलने बाले संवाद और गायन बीच ब्रज भाषा के साथ प्रेम मयी गालियां सुनाई दी। गौरी तेरे नैना काली घटा, आपने पति को दूधउ न पीवै देवर कौ पीवै खट्टो मठा। जेसे समूह गीतो के बनच रोमांच और रसरंग की छटा ने जो रस बरसै बरसाने में ऐसौ रस बैकुन्ठऊ में नाय की लोकोक्ति को चरितार्थ कर दिया। एक धन्टा तक लाठियों के करारे प्रहारो में ईष्र्या द्वेष या वैमनस्यता का अंश क्षणिक भी दिखाई नहीं दिया । यहां एक दूसरे के प्रति प्रेम और अनुराग का अथाह समुद्र नजर आया। यही कारण है कि विश्व प्रसिद्ध बरसाना की लठामार होली में लट्ठों की मार को नन्दगांव के हुरियारे अपनी ढालो पर हंसते-हंसते झेल गये। नन्दगांव के हुरियार प्रेम के पगे लट्ठो की मार को झेेेलकर अपने आप को धन्य मानते हुए कल नन्दगांव में होरी खेलने को आने की कह कर अपनी कुशल कामना करते हुए चले गये। प्रेम के सागर के रस में सराबोर माहोल में जब हुरियारिनें लाठी चलाने से थक जातीं तो सहयोग को खडी दूसरी हुरियारिन उनका स्थान लेकर लाठी चलाने लग जाती जब हुरियारा थक जाता तो उसकी ढाल को दूसरा हुरियारा थाम लेता।इस अनोखी प्रेम पगी लठामार होली के बीच में आगर कोई बाहरी व्यक्ति आ भी जाता है तो हुरियारे व हुरियारिन दोने मिलकर उसकेा खदेड़ देतें है।
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परंपरा से जुड़े हैं दोनों गांव, नहीं होते वैवाहिक संबंध
बरसाना। नन्दगांव बरसाना के बीच द्वापर युग के समय से चली आ रही राधा कृष्ण और गोपों के समूह द्वारा की गयी लठामार होली की परंपरा को पूरी तरह से निर्वहन करते आ रहे है। आज भी नन्दगांव बरसाना के बासिंदे लठामार होली को जीवंत रखन के लिए दोनों गांवों के बीच विवाह संबंध स्थापित नहीं होता।
अहो रंग हो हो हो होरी खेलैं लाड़िली नव लाल सों ।
होली रसियाओं के संवेत स्वरों गूंज उठी रंगीली गली
बरसाना। मास फागुन कौ भागन ते आयौ तिथी नौमी शुदी पाख लायौ , लाला तैने कैसौ फाग मचायौ। मानौ दूल्हा व्याहन आयौ। जो खेले सो बराती ,यही ब्याह यही गौना तेरी होरी खेलन में टौना फागुन मास की नौवीं तिथी की शुभ घडी के दिन नन्दगांव के नन्द महल से माता यसोदा से होली खेलने की आज्ञा लेकर नन्दगांव के हुरियारे ग्वाल वालों की मंंडली के पीछे-पीछे बरसाना को आते हैं। जिनके दर्शनों के लिये देश विदेश से लाखों श्रद्धालू यहां एकत्र होते है। हुरियारों अपने सिर पर पकडी बांधे हाथों में ढाल, पिचकारी और कमर में गुलाल की फेंट बांधे बृषभान दुलारी के महल की ओर चढने लग जाते है। बृषभान के आंगन में अबीर गुलाल के साथ रंग की होली खेलते है। यहां दोनो ओर से पिचकारी चलने लग जाती है। दोनो तरफ से एक दूसरे को गारी दै दै कै होरी खेलने कॅू उकसाते है।
लाड़िलीजी मंदिर से उतर कर नन्दगांव के हुरियारे रंगीली गली में उतरने लग जाते है। ओर वहां बरसाने की हुरियारिनें जो कि ब्राह्मण परिवार की सुहागिन वधुएं नन्द के लाला के इंतजार में सोलह श्रृंगार करके तैयार ठड़ी है। की नन्द को लाला कब आवै गौ और उसकी सारी कसक आज हम सब मिलकर उसकी सारी हेकडी निकाल देंगी। इधर हुरियारे रंगीली गली में होरी खेलने का आमऩ्त्रण हुरियारिनों को देते है, और हुरियारे और हुरियारिनों के मध्य होरी के रसियाओं का आदान प्रदान होता है। नन्द के मोय गैल चलत मोय गारी दई रे , रसिया होरी में लग जायेगी रे । मत मारै दृगन की चोट।। रसिया कूॅ नार बनाबौ री रसिया कूुॅ कटि लहगा गल मौहि कचुकी, अरी याके चॅूदर सीस उढाबौरी। नैंक आगे आ श्याम तोपै रंग डारू ,नेक आगे आ। बाबा वृषभान के मची होरी उत में ठाडे़ कुॅवर कन्हैया इत ठाड़ी राधा गौरी। चली है कुॅवर राधे खेलन होरी ।।
कुॅवरि कुॅवर मिलि खेलही रंग रंगीलो फाग हो ।।
रंग हो हो होरी खेलैं लाड़िली वृषभान की ।।
अहो रंग हो हो हो होरी खेलैं लाड़िली नव लाल सों ।।
उत सांवरौ बहु रंगन रॅगीलौ।
कनक लकुट छैलन पर टूटत फिरत कॅुवरजू की आन
रसियाओं के मध्य हुरियारे हंसी ठिठौली करने लग जाते है। इसी मध्य हुरियारिने हुरियारों पर लठ्ठों से प्रहार करने लग जाती है। गोपियां नन्द के ग्वालोेेें पर तड़ातड़ लाठियां बरसानी शुरू कर देती है। लाठियों की तडतडाहट और राधारानी के जयकारे से सगरी रंगीली गली गूॅजने लग जाती है। बृषभान दुलारी की सहचरी हुरियारिने नन्दगांव के हुरियारिनों को घुटनों के बल बैठा लेती है। हुरियारे लठ्ठो की मार से बचने के लिये अपने सिर ढाल रख लेते है। सगरी गोपियां मिल जुल कर लाला की सारी हेकड़ी निकालने के लिये लाठियां बरसा रहीं है। और नन्द का लाला है कि मानता नहीं है,और वह घुटमन बैठा मार खाता हुआ भी राधा की सखियों हुरियारिनों को उकसा रहा है और उछल कुद मचाने लग जाता है। गोपियां भी कहां मानने बाली है वह आज लाला के पीछे ही पड़ गयी है। दूने जोर से लाठियां भांजने लग जाती है। इस विहंगम दृश्य को देखने के लिये दुनिया भर के लोग रंगीली गली की चैपालों पर बैठकर आनन्दित हो रहे है, और राधारानी के जयकारे लगा रहे। इस दौरन किसी की मजाल नहीं है कोई भी होली के दौरान रंग गंलाल डाल सके अगर किसी ने ऐसा किया तो दोनो मिलकर उसको सबक सिखा देते है। होरी के रसिया बने नन्दगईया थक कर अदल बदल कर खेल रहे है। गोपियों के प्रहार तेज होते ही हुरियोरे गोपियों से मान मनुहार करते है कि मत मारे दृगन की चोट होरी में मरे लग जायेगी। फिर भी यह मनुहार काम नही आता है। एक-एक हुरियारे पर तीन-तीन,चार-चार हुरियारिने लाठियां बरसाने लग जाती है। जब नन्द के लाला व उसके ग्वाल बाल होरी खेलते हुये थक जाते है तो हार कर अपने हाथ उठा देते है, और कहते है कि तुम जीती हम हारे। राधा की सखी कहती है की लाला फिर अईयो होरी खेलने। कह कर एक दूसरे से बिदा लेते है। इतना तो औपचारिक था पर सच्चाई तो ये थी कि कोई भी एक दूसरे से अलग नहीं होना चाह रहा था।
राधे-श्याम के प्रेम में सराबोर हुए हुरियारे-हुरियारिनें
बरसाना। वृषभान नंदनी की जन्मस्थली बरसान की रंगीली गली में शनिवार को भगवान श्रीकृष्ण के साथ नंदगांव के हुरियारों ने जमकर रंग-अबीर गुलाल की वर्षा की। हुरियारे वाद्य यंत्र एवं होली गीतों के साथ फागुन की मस्ती में चहुं ओर सामरे कान्हा का रंग दिखने लगा। भक्ति एवं प्रेम का प्रदर्शन उस समय चरम पर पहुंच गया जब राधा को सखियों ने हुरियों की ढ़ाल पर प्रेम
रस से पगी लाठियों की ताबड़तोड़ प्रहार जैसे ही किया तो समूची रंगीली गली तड़ातड़ की अबाज से गुंजायमान हो गई। देश विदेश से आये लाखों भक्त राधारानी की जय नंद के लाला की जय के जयकारे लगाने लगे।
यहां की रंगीली गली में फाग की परम्परा को जीवंत करते हुए हुरियारिन सांखी के गीत सुनो नंद के नंदा तुम कारे कौन के छईया गाते हुए नाचती झूम रहीं थी। हुरियारे गली में अबीर गुलाल उड़ाते हुए मस्ती में हुड़दंग के साथ फाग खेलन बरसाने में आए हैं नटवर नंद किशोर जैसे पद गाते हुए चल रहे थे। सुंदर सजी धजी महिलाएं कृष्ण भक्ति के रंग में सराबोर नजर आ रहीं थी। श्रद्धालु हो या वीआईपी सभी भी यहां सतरंगी बरसात में अछूते नहीं थे। यहां का कण कण गिरधर के रस रंग में भीग रहो चहुंधा बरसानों की तान पर थिरक रहा था। आसमान में उड़ते अबीर गुलाल ने सम्पूर्ण माहौल को कई रंगों से ढ़क दिया। सजधज कर अपने-अपने घरों से आई हुरियारिनें सजी भागन ते फागुन आयौ होरी खेलूंगी श्याम संग आज जैसे मीठे गीत गा रहीं थीं।
इस बीच गली में एक छोर से नंदगांव के हुरियारे कह रहे थे कि कोई बुरा भला न मानौ आज ब्रज होरी है, तो दूसरे छोर पर खड़ी बरसाने की हुरियारिनें कह रहीं थीं कि जो खेलों तो सूधे खेलो लाला नहीं मारुंगी गुलचा चार। युगों से चली आ रही होली की परंपरा के क्रम में शनिवार
की सुबह नंदगांव में भगवान श्रीकृष्ण के सखाओं ने मंदिर में जाकर श्रीकृष्ण की प्रतिमा के समक्ष माता जशोदा से बरसाना होली खेलने की अनुमति मांगी। पारंपरिक वेश भूषा मे सजे हुरियारे मंदिर से श्रीकृष्ण की प्रतीक झंडी को लेकर बरसाना स्थित प्रिया कुंड पहुंचे। यहां नंदगांव के हुरियारों का बरसाने वालों ने भांग ठंडाई पिलाकर स्वागत किया। सिर पर पगड़ी बांधकर, हाथों में ढाल ओर पिचकरी लेकर हुरियारे ब्रह्मगिरी पर्वत स्थित लाडलीजी मंदिर की ओर दरशन दै निकस अटा में ते दरशन दे, श्री राधे वृषभान दुलारी, पद गाते हुए बढे। इससे पूर्व कस्बे के गोस्वामी समाज ने मुख्य आयोजन स्थल पर एकत्रित होकर रसिया गाए। यादव, और गोस्वामी समाज ने होली की चैपई निकाल कर समारोह में चार चांद लगा दिए। गोस्वामी समाज की चैपई प्रिया कुंड मार्ग पर पहुंची जहां नंदगांव के सबसे वृद्ध गोस्वामी का बरसाने के सबसे वृद्ध गोस्वामी ने मिलनी की। मंदिर पहुंचकर बरसाना और नंदगांव के हुरियारों ने मिलकर गिरधर के अनुराग सौं रंग भीज रहौ बरसानौं जूं पद गाया। बरसाना के ब्राह्मण युवकों ने जमकर अपनी पिचकारियों से टेसू के फूलों से निर्मित किए गए रंग से नंदगांव के हुरियारों को सराबोर कर दिया। मंदिर से होली खेलकर नंदगांव के हुरियारेे रंगीली गली में पहुंचे। जहां पहले से उनकी प्रतिक्षा में खड़ी बरसाने की हुरियारिनों ने उनको गालियां सुनानी प्रारंभ कर दी। यहां हंसी ठिठौली के बीच उड़ते रंगों पर प्रेम की लाठी बरसी। इन लाठियों से नंदगांव के हुरियारे अपनी ढालों की ओट में बचते हुए नजर आए। कुछ ढालों पर गोपियों की लाठियों के वार सहते हुए उछल कूद करते नजर आए। रंगीली गली, फूलगली, सुदामा मार्ग, राधा बाग मार्ग, थाना गली, मुख्य बाजार, बाग मौहल्ला में ढालों पर लाठियों की आवाजें गूंज रहीं थीं। होली का रंग इस कदर चढ़ा कि आम और खास व्यक्तियों में कोई फर्क नजर नहीं आ रहा था। बरसाना की गोपियों से जब नंदगांव के हुरियारे हार गए तो गोपियां कहने लगी लाला फिर अईयों खेलन होरी। अंत में दोनों पक्षों ने लाडली लाल की जयकारे बोलकर होली का समापन किया। हुरियारे नंदगांव के लिए प्रस्थान कर गए। वहीं बरसाने की हुरियारिनें अपनी जीत की सूचना देने लाडली मंदिर होली के रसिया गाती हुई पहुंची।
कल होगी नंदगांव में लठामार
बरसाना।रविवार को बाबा नंद के गांव नंदगांव में लठामार होली खेलने बरसाना के हुरियारे जाएंगे। जहां कृष्ण और उनके ग्वालवालों के रुप में नंदगांव की गोपियां बरसाना के हुरियारों से लठामार होली खेलेंगी।
हेलीकॉप्टर से हुई पुष्प वर्षा
बरसाना। उज्जैन माहकाल मंदिर के महंत ने 1 बजे से राधा रानी मंदिर व श्रद्धालुओं के साथ शाम को लठामार होली के समय सभी भक्तों पर पुष्प वर्षा की।