27 साल पहले कंट्रोल क्या हटा, सरपट दौड़ा आलू भाड़ा

आगरा। एक समय था जब यूपी में कोल्ड स्टोरेज नियमन कानून के अंतर्गत संचालित होते थे। 1997 में तत्कालीन मायावती सरकार ने जब कोल्ड स्टोरेज को सरकार के भाड़ा नियंत्रण से मुक्त किया, तब से कोल्ड स्टोरेज स्वामियों को भाड़ा तय करने का अधिकार खुद को मिल गया है। 1997 में एक क्विंटल आलू को कोल्ड स्टोरेज में रखने का भाड़ा 44 रुपये हुआ करता था, जो अब बढ़कर 300 रुपये क्विंटल तक जा पहुंचा है।

Feb 11, 2025 - 09:28
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27 साल पहले कंट्रोल क्या हटा, सरपट दौड़ा आलू भाड़ा

-नियंत्रण मुक्त होते समय 44 रुपये क्विंटल था आलू भाड़ा, अब 300 रुपये क्विंटल
-1997
में मायावती सरकार ने कर दिया था कोल्ड स्टोरेज को भाड़ा नियंत्रण से मुक्त
-
अब कोल्ड स्टोरेज मालिक खुद ही तय करते हैं आलू भंडारण की दरें
-50
किलो के पैकेट पर 20 रुपये भाड़ा बढ़ने से तिलमिला उठे हैं किसान


आलू उत्पादक किसानों में कोल्ड स्टोरेज स्वामियों की इसी मनमानी के कारण आक्रोश पनप रहा है। भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) इस मुद्दे पर आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर चुकी है। यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत आज आगरा के बमरौली कटारा में 11 बजे से होने जा रही किसान पंचायत में भाग लेने पहुंच रहे हैं। इस बीच जिला प्रशासन भी एक्टिव हो चुका है। जानकारी मिली है कि जिलाधिकारी अरविंद मलप्पा बंगारी भी आलू भाड़े को लेकर आज ही बैठक करने जा रहे हैं। 

रोमेश भंडारी ने शुरुआत की, मायावती ने हटाया नियंत्रण
उत्तर प्रदेश में कोल्ड स्टोरेज का भाड़ा शुरुआत से सरकार ही नियंत्रित किया करती थी। 1996 में यूपी में जब राष्ट्रपति शासन था, तब यूपी के कोल्ड स्टोरेज स्वामियों ने तत्कालीन गवर्नर रोमेश भंडारी से एप्रोच की थी कि कोल्ड स्टोरेज के भाड़े से सरकारी नियंत्रण हटा लिया जाए। राष्ट्रपति शासन के दौरान ही सरकार का भाड़े से नियंत्रण हटाने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी, लेकिन इस पर निर्णय 1997 में तब हुआ जब राज्य में मायावती मुख्यमंत्री बन चुकी थीं। 

एक साथ बढ़ाया था दोगुने से ज्यादा भाड़ा
कोल्ड स्टोरेज भाड़े से सरकारी नियंत्रण समाप्त होते ही यूपी के कोल्ड स्टोरेज स्वामियों ने एक झटके में ही भाड़ा 44 रुपये से बढ़ाकर 96 रुपये क्विंटल कर दिया था। यह दोगुने से भी ज्यादा था। इसका आलू उत्पादक किसानों ने कड़ा विरोध किया था। आगरा में किसान आंदोलित हुए तो आगरा के तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी ने हस्तक्षेप किया था। 
तत्कालीन सीडीओ ने तब कहा था कि भाड़ा नियंत्रण मुक्त के आदेश में यह क्लॊज है कि स्टोर कोल्ड स्टोरेज मालिक मोनोपॊली (होलिपॊली) नहीं बना सकते। ऐसी स्थिति बनने पर सरकार हस्तक्षेप कर सकती है। इसी क्लॊज को आधार बनाकर तत्कालीन सीडीओ ने कोल्ड स्टोरेज मालिकों को आलू भाड़े की दरें घटाने को मजबूर कर दिया था। तब जो भाड़ा 96 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया था, उसे घटाकर 72 रुपये प्रति क्विंटल किया गया था। 

तब के किसान नेता अब कोल्ड स्टोरेज मालिक
1997
में कोल्ड स्टोरेज का भाड़ा नियंत्रण मुक्त होने के बाद जब कोल्ड स्टोरेज स्वामियों ने दोगुने से ज्यादा भाड़ा बढ़ाया था, तब किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले किसान नेताओं में से कई आज कोल्ड स्टोरेज के मालिक हैं। आगरा के तमाम राजनेताओं के भी कोल्ड स्टोरेज हैं, इसलिए न तो तब के किसान नेताओं और न ही राजनीतिक नेताओं को आलू भाड़ा 300 रुपये प्रति क्विंटल करने में कुछ भी गलत दिखता। अब इनके हित किसानों वाले न होकर व्यापारी वाले हैं। 

छोटे और मध्यम किसानों का होता है शोषण
कोल्ड स्टोरेज मालिकों द्वारा पिछले कुछ सालों से प्रायः हर वर्ष आलू भाड़े की दरों में वृद्धि की जा रही है। पिछले साल भी दरें बढ़ाई गई थीं। अब इस साल एक झटके में 20 रुपये प्रति पैकेट (50 किलो का पैकेट) दर बढ़ाई गई है जो क्विंटल में 40 रुपये बैठती है। इसी से किसान तिलमिला उठे हैं। 
एक सच्चाई यह भी है कि भले ही आलू भाड़े की दरें 300 रुपये प्रति क्विंटल तय कर दी गई हैं, लेकिन सभी कोल्ड स्टोरेज के मालिक बड़े भण्डारकों (बड़े किसानों और व्यापारियों) से आपसी तयशुदा भाड़ा ही लेते हैं जो कि आज भी 200 रुपये क्विंटल से भी कम होता है। छोटे व मध्यम किसानों से भाड़े की उच्चतम दरें वसूल की जाती हैं।

SP_Singh AURGURU Editor