चले गए कीलोर, 65 के युद्ध में पाक के छुड़ा दिए थे छक्के, साढ़े चार लाख बच्चों का जीवन सुधारा

गुरुग्राम। इंडियन एयर फोर्स के प्रसिद्ध फाइटर पायलट और 1965 के वॉर हीरो एयर मार्शल डेन्जिल कीलोर का 91 वर्ष की उम्र में 28 अगस्त को गुरुग्राम में निधन हो गया। एयरफोर्स से रिटायरमेंट के बाद वह गुरुग्राम में रह रहे थे। एयर मार्शल कीलोर का नाम हमेशा एक जांबाज पायलट के तौर पर लिया जाता है। 1965 के वॉर में उन्होंने पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिये थे। उन्होंने नैट विमान से 19 सितंबर, 1965 को पाकिस्तानी वायु सेना के एफ-86 सैबर जेट को मार गिराया था। उनके वीरतापूर्ण कार्यों के लिए उन्हें युद्ध के समय के तीसरे सबसे बड़े वीरता पुरस्कार वीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

Aug 30, 2024 - 11:43
Aug 30, 2024 - 14:51
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चले गए कीलोर,  65 के युद्ध में पाक के छुड़ा दिए थे छक्के, साढ़े चार लाख बच्चों का जीवन सुधारा


केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ट्वीट कर एयर मार्शल डेन्ज़िल कीलोर के निधन से गहरा दुख हुआ। उन्होंने कहा कि 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उनकी वीरता राष्ट्र के प्रति उनके अटूट साहस और समर्पण का प्रमाण है। उनकी विरासत आसमान से भी कहीं आगे तक फैली हुई है। स्पेशल ओलंपिक्स भारत के संस्थापक के रूप में उन्होंने खेलों के माध्यम से समावेशिता, जागरूकता और सशक्तिकरण के आंदोलन को बढ़ावा देते हुए 450,000 से अधिक विशेष बच्चों के हितों का समर्थन किया। 

वर्ष 1965 के युद्ध में उनके बड़े भाई विंग कमांडर ट्रेवर कीलर भी बीच हवा में दुश्मन के विमान को मार गिराने वाले पहले भारतीय पायलट थे और उन्हें भी वीर चक्र से सम्मानित किया गया था। डेन्जिल को नवंबर 1954 में वायु सेना में नियुक्त किया गया था और उन्होंने फाइटर स्क्वाड्रन, टैक्टिकल एयर कॉम्बैट डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट, एयर अताशे फ्रांस और फाइटर बेस के एयर ऑफिसर कमांडिंग सहित महत्वपूर्ण कमांड और स्टाफ पदों पर काम किया था।

उनकी बहादुरी को एसएन प्रसाद की किताब, द इंडिया-पाकिस्तान वॉर ऑफ 1965 में दर्ज किया गया है, जो तकनीकी रूप से कमजोर होने के बावजूद भारतीय वायुसेना के वीरतापूर्ण प्रयासों को दिखाती है। एयर मार्शल डेन्जिल कीलोर ने बांग्लादेश की आजादी के लिए 1971 के युद्ध में भी हिस्सा लिया था लेकिन 8 दिसंबर को, उनके विमान को मार गिराया गया और सुरक्षित बाहर निकलने के बाद वह घायल हो गए, जिससे उन्हें युद्ध का बाकी समय अस्पताल में रहकर गुजारना पड़ा था। बाद में कीलोर बंधुओं के सम्मान में लखनऊ रेलवे स्टेशन पर एक पट्टिका लगाई गई, जो दोनों शहर में पले-बढ़े थे। कीलोर बंधुओं ने लखनऊ के ला मार्टिनियर स्कूल से पढ़ाई पूरी की थी। बाद में वह सेंट स्टीफेन्स कालेज से स्नातक की डिग्री हासिल की।