दिल्ली चुनाव तो बहाना, राहुल गांधी पर निशाना
दिल्ली। दिल्ली में विधान सभा चुनाव की तिथियां घोषित होने के साथ ही जिस तेजी से राजनीतिक घटनाक्रम बदल रहे हैं, उससे समूची कांग्रेस ठगी सी दिख रही है। दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी के समर्थन की जो लकीर सबसे पहले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने खींची थी, वह अब लगातार लम्बी होती जा रही है। इसे इंडिया ब्लॊक में राहुल गांधी को लेकर उठे बगावती स्वरों का पार्ट टू माना जा रहा है।

-इंडिया ब्लॊक के क्षेत्रीय पार्टियां यूं ही नहीं तरेर रहीं कांग्रेस पर आंखें
-हरियाणा-महाराष्ट्र में कांग्रेस की करारी हार के बाद ये हमले का पार्ट टू
पिछले महीने की शुरुआत में राहूल गांधी के नेतृत्व को लेकर सबसे पहले बंगाल से आवाज उठी थी। टीएमसी के सांसद कीर्ति आजाद ने जब यह कहा कि अब इंडिया ब्लॊक की कमान बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को सौंप दी जानी चाहिए तो विपक्षी गठबंधन के दूसरे दलों में इसका समर्थन करने की होड़ सी लग गई थी।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, एनसीपी चीफ शरद पवार, शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे, आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने ममता बनर्जी के नेतृत्व का खुला समर्थन किया था। कांग्रेस को उस समय बड़ा झटका लगा था जब राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने भी ममता बनर्जी का समर्थन कर दिया।
अभी यह मामला पूरी तरह ठंडा भी नहीं हो पाया था कि कांग्रेस पर दूसरा प्रहार दिल्ली के विधान सभा चुनाव की घोषणा होते ही हो गया। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने चुनाव की घोषणा से पहले ही कह दिया था कि वे दिल्ली में आम आदमी पार्टी का साथ देंगे। बुधवार को दिल्ली की सीएम ममता बनर्जी, शिवसेना (यूबीटी) अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के साथ ही बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने भी दिल्ली के चुनाव में अरविंद केजरीवाल का साथ देने की घोषणा कर दी है।
यह स्थिति तब है जब इंडिया ब्लॊक की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस है। दिल्ली में कांग्रेस अब अकेली खड़ी दिखाई दे रही है। राजनीतिक पंडित इन घटनाक्रमों को भी इंडिया ब्लॊक में राहुल गांधी के खिलाफ उठे स्वरों से जोड़कर ही देख रहे हैं।
लोकसभा चुनाव से पहले इंडिया के गठन और फिर अब तक हुए लोकसभा और विधान सभा चुनाव के दौरान हुए घटनाक्रमों पर गौर करें तो एक बात साफ हो जाती है कि कांग्रेस और विभिन्न राज्यों के उसके सहयोगी दलों के बीच दूरियां पैदा हो रही हैं। यूपी में गठबंधन कर चुनाव लड़ी सपा और कांग्रेस के रिश्तों में दरार आ चुकी है और यह लगातार चौड़ी होती जा रही है। इसमें सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का अपना दर्द है, जो उन्हें पिछले साल मध्य प्रदेश चुनाव के बाद हाल ही में हुए हरियाणा और फिर महाराष्ट्र के चुनाव में महसूस किया है। अखिलेश यादव के चाहने के बाद भी कांग्रेस ने उन्हें इन राज्यों में एक भी सीट नहीं दी थी।
यही दर्द आम आदमी पार्टी का है जो उसने हरियाणा के चुनाव में महसूस किया और अब आप यही दर्द दिल्ली में कांग्रेस को महसूस कराना चाहती है। बंगाल की सीएम ममता बनर्जी तो शुरुआत से ही इंडिया ब्लॊक के नेतृत्व को लेकर सवाल उठाती आ रही हैं।
हवा के बदले हुए रुख में राजद, शिवसेना (यूबीटी) और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी भी कांग्रेस से मुंह मोड़ती दिख रही है। हालांकि यह स्थिति तो लोकसभा चुनाव के बाद ही पैदा होने लगी थी, लेकिन तब कांग्रेस की सीटें बढ़ने के कारण ये दल चुप थे। हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस की करारी हार होते ही ये दल कांग्रेस के खिलाफ मुखर हो उठे हैं। अब ये सारे दल मिलकर इस तरह का माहौल बना रहे हैं जिससे यह लगे कि कांग्रेस दिल्ली में चुनाव लड़कर अरविंद केजरीवाल की राह में बाधाएं खडी कर रही है।
इंडिया ब्लॊक में जो हालात बन रहे हैं, उसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा कि अरविंद केजरीवाल की वह मांग पूरी हो जाए जिसमें उन्होंने कांग्रेस को इंडिया से अलग करने की मांग की थी। ऐसी स्थिति बनी तो देश की राजनीति त्रिकोणीय हो जाएगी। तब भाजपा के सामने एक ओर कांग्रेस होगी तो दूसरी ओर ममता बनर्जी के नेतृत्व में उभरने वाला थर्ड फ्रंट होगा।