सोना निगलकर लौटते हैं 'दुबई ट्रैवलर्स': यूपी के टांडा कस्बे में डेढ़ सौ युवाओं का गोल्ड रन!

मुरादाबाद। उत्तर प्रदेश के रामपुर जिले का टांडा कस्बा अचानक मुरादाबाद पुलिस और अन्य जांच एजेंसियों के रडार पर आ गया है। वजह है एक ऐसी गोल्ड स्मगलिंग चेन, जो ना सिर्फ सुनियोजित है बल्कि हैरतअंगेज भी। मुरादाबाद पुलिस की हालिया जांच में खुलासा हुआ है कि टांडा के 150 से अधिक युवक दुबई से भारत में गोल्ड कैप्सूल निगलकर ला रहे हैं। इस खुलासे ने तस्करी के तरीकों और इसके नेटवर्क की गहराई को लेकर सनसनी फैला दी है।

May 29, 2025 - 13:23
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सोना निगलकर लौटते हैं 'दुबई ट्रैवलर्स': यूपी के टांडा कस्बे में डेढ़ सौ युवाओं का गोल्ड रन!
प्रतीकात्मक इमेज।

-यूपी से दुबई तक फैला है सोने की निगली तस्करी का चौंकाने वाला नेटवर्क, जांच एजेंसियां तलाश रही हैं मास्टरमाइंड को

  बॉडी म्यूल्स’ बन चुके हैं युवा

मुरादाबाद में हाल ही में पकड़े गए चार तस्करों के पेट से बरामद हुआ एक किलो सोना  इस मामले की जांच की शुरुआत बना। जैसे-जैसे परतें खुलीं, पुलिस की नजर टांडा कस्बे पर आकर टिक गई। जांच में सामने आया कि इस छोटे से कस्बे के कई युवक ‘बॉडी म्यूलके रूप में काम कर रहे हैं, यानी दुबई से लौटते वक्त वे अपने पेट में 30-35 ग्राम वजनी 6-7 गोल्ड कैप्सूल निगल कर भारत लाते हैं।

दुबई ट्रिप का खर्चा फ्री, इनाम 30,000 रुपये प्रति चक्कर

मुरादाबाद के एसपी सिटी रणविजय सिंह ने बताया कि तस्करी का नेटवर्क इतना मजबूत है कि इन युवकों को दुबई भेजने, ठहराने और टिकट तक का पूरा इंतज़ाम तस्करी गिरोह ही करता है। एक चक्कर के बदले हर युवक को 30,000 रुपये का भुगतान किया जाता है। वे दुबई में कुछ दिन बिताते हैं, कैप्सूल की शक्ल वाला सोना खरीदते हैं और उसे निगलकर भारत लौट आते हैं।

कैप्सूल निकासी की चौंकाने वाली प्रक्रिया

भारत लौटने के बाद इन युवकों को एक विशेष टॉयलेट में ले जाया जाता है, जहां एक जालीदार शौचालय सीट लगाई गई होती है। मल उस जाली पर रुकता है, जिसे फिर धोकर कैप्सूल निकाले जाते हैं। यह सुनियोजित और संगठित प्रक्रिया दुबई से दिल्ली तक फैली है।

सोने की तस्करी: एक किलो पर 20 लाख की बचत

जांच में यह भी सामने आया है कि प्रति किलो सोने की तस्करी पर गिरोह को करीब 20-22 लाख रुपये का मुनाफा होता है। दुबई एयरपोर्ट पर भी कथित 'सेटिंग' के संकेत मिले हैं, जिससे यह साफ है कि यह तस्करी किसी छोटे नेटवर्क का हिस्सा नहीं, बल्कि एक बहुस्तरीय अंतरराष्ट्रीय रैकेट है।

सवाल कई हैं, जवाब खोज रही है एजेंसियां

-आखिर इतने युवकों को कब और कैसे फंसाया गया?

-क्या यह बेरोजगारी का फायदा उठाने वाला संगठित रैकेट है?

-दुबई एयरपोर्ट पर किस स्तर तक मिलीभगत है?

-और सबसे अहम कि इस सबका मास्टरमाइंड कौन है?

SP_Singh AURGURU Editor