टीटीपी पर तालिबान का पाकिस्तान को झटका: कार्रवाई से किया इनकार, रिश्तों में खटास और बढ़ी
टीटीपी को लेकर अफगानिस्तान की नर्मी और पाकिस्तान की सख्ती के बीच दक्षिण एशिया की सुरक्षा नीति जटिल हो गई है। इस मामले ने साफ कर दिया है कि "भाईचारा" जैसे शब्दों से आगे जाकर अब दोनों देशों को कड़वी सच्चाइयों का सामना करना पड़ेगा। क्या पाकिस्तान को टीटीपी के खिलाफ लड़ाई में अब अकेले ही मोर्चा संभालना पड़ेगा? आने वाले दिनों में इसका जवाब मिल सकता है।

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इस्लामाबाद/पेशावर। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रिश्तों में एक बार फिर तल्खी आ गई है। अफगान तालिबान ने तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) पर कार्रवाई करने के पाकिस्तान के आग्रह को साफ तौर पर ठुकरा दिया है। यह घटनाक्रम उस वक्त सामने आया है जब पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार की काबुल यात्रा को इस्लामाबाद एक ‘राजनयिक सफलता’ बता रहा है।
हालांकि, सुरक्षा के सबसे अहम मुद्दे पर अफगान तालिबान के साफ इनकार ने पाकिस्तान की चिंताओं को और बढ़ा दिया है। टीटीपी के आतंकी पाकिस्तान में आए दिन हमले कर रहे हैं और पाक खुफिया एजेंसियों का मानना है कि इन आतंकियों को अफगान सरजमीं पर पनाह और समर्थन दोनों मिल रहे हैं।
रिश्तों में भाईचारा या सिर्फ अविश्वास?
एक उच्चस्तरीय स्रोत के मुताबिक, इशाक डार की यात्रा के दौरान पाकिस्तान ने अफगान तालिबान से टीटीपी की गतिविधियों पर रोक लगाने, सीमा पार हमलों को नियंत्रित करने और शरणार्थियों की वापसी जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाया। मगर, काबुल में इन पर कोई ठोस सहमति नहीं बन सकी। सूत्र के मुताबिक, डार ने खुद स्वीकार किया कि पाक-अफगान रिश्तों में अविश्वास की खाई चौड़ी हो चुकी है।
पाकिस्तानी हवाई हमलों से पहले ही बिगड़े हैं रिश्ते
पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान ने टीटीपी की गतिविधियों को रोकने के नाम पर अफगानिस्तान पर कई हवाई हमले किए हैं, जिनमें आम नागरिकों की मौत भी हुई। इसका असर अफगान जनता और तालिबान सरकार, दोनों के नजरिए पर पड़ा है। तालिबान ने बार-बार इन हमलों की निंदा की है और पाकिस्तान को आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की चेतावनी दी है।
व्यापार और राजनीति में सफलता लेकिन सुरक्षा पर नाकामी
हालांकि, पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय का दावा है कि डार की यात्रा व्यापार और राजनीतिक संबंधों को सुधारने की दिशा में सफल रही। अफगानिस्तान के साथ ट्रेड डेफिसिट, बॉर्डर मैनेजमेंट, और शरणार्थी नीतियों पर चर्चा हुई। लेकिन सुरक्षा मुद्दों पर बनी दूरी ने इस सफलता की चमक फीकी कर दी।