तिलोत्तमा शोम ने कहा कि अभिनय की असली ट्रेनिंग जेल में ली
मुंबई। तिलोत्तमा शोम अब 'पाताल लोक 2' को लेकर चर्चा में हैं। उन्होंने बताया कि अभिनय की असली ट्रेनिंग उन्होंने न्यूयॉर्क के जेल से ली। वहां दो साल तक उन्होंने एक महिला कैदी और एक पुरुष कैदी के साथ काम किया।
तकरीबन दो दशक पहले आई 'मॉनसून वेडिंग' से करियर का शुभारंभ करने वाली तिलोत्तमा का इंतजार ओटीटी और फेस्टिवल वाली भूमिकाओं ने खत्म किया। 'दिल्ली क्राइम', 'सर', 'नाइट मैनेजर', 'लस्ट स्टोरीज', 'कोटा फैक्ट्री 3' के बाद अब वे 'पाताल लोक 2' का हिस्सा बनने जा रही हैं। आज तिलोत्तमा शोम ओटीटी का जाना-माना नाम हैं। मगर अभिनय के क्षेत्र में अपनी जगह पक्की करने के लिए उन्हें काफी लंबा समय देना पड़ा। वे कहती हैं, 'मेरी पहली फिल्म थी मॉनसून वेडिंग, जो तकरीबन दो दशक पहले आई थी और उस फिल्म के बाद मेरी इमेज एक दुखियारी वंचित लड़की की बन गई, जिसे दिल्ली क्राइम, सर और लस्ट स्टोरीज जैसे प्रॉजेक्ट्स ने तोड़ा। कोटा फैक्टरी 3 से मैं यूथ से जुड़ी। आज मेकर्स का मेरे प्रति नजरिया बदल गया है। मैं अपने निर्देशकों और लेखकों की शुक्रगुजार हूं, जो उन्होंने मुझे अलग-अलग शेड्स की भूमिकाएं दीं। ऐसी ही एक भूमिका है पाताल लोक 2 की है। जब मैं इस सीरीज से जुड़ी, तो मुझे डर भी था और नर्वसनेस भी थी, मगर जब मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी, तो मैं उसके इश्क में पड़ गई।
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी से एजुकेशनल थिएटर से डिप्लोमा ले चुकी शोम ने कहा कि जब मैंने अपनी पहली फिल्म मॉनसून वेडिंग की तब मेरे पास किसी भी तरह की कोई ट्रेनिंग नहीं थी। मैं एकदम साफ स्लेट की तरह आई। मैं अन्य कलाकारों की तरह एनएसडी या एफटीआई नहीं गई हूं। मॉनसून वेडिंग के तीन साल बाद जब मैंने ये कोर्स किया,तो ये ड्रामा थेरेपी और लिटरेचर का कोर्स था। उसके बाद मैंने न्यूयॉर्क की राइकर आइलैंड की जेल में काम किया था। वो महिलाओं और पुरुषों की हाई सिक्योरिटी जेल है। वहां मैंने दो साल तक एक महिला कैदी और एक पुरुष कैदी के साथ काम किया और सच कहूं, तो मेरे अभिनय की ट्रेनिंग वहीं से हुई। मैं वहां एक ही समय में स्टूडेंट्स के साथ भी थी और कैदियों के साथ भी। मैं वहां अपराध ही नहीं मानवीय जटिलताओं को भी समझ पाई। जब तक मैं वहां काम कर रही थी, वो दुनिया मेरे लिए बहुत ही अलग थी, मगर जब मैं वहां से मुंबई आई और ऑडिशन देने लगी, तब मैं एक व्यक्ति के रूप में काफी मैच्योर हो चुकी थी। वहां मैंने लोगों को ऑब्जर्व करने में दो साल बिताए। मेरे मन में कई सवाल उठते थे कि इन लोगों को इस जेल में किन हालातों ने पहुंचाया होगा? यही वजह है कि जब मैं दिल्ली क्राइम में साइको किलर बनी तो किरदार की मानसिकता को समझ पाई ।